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________________ । १५ । लिखते थोडासा नमुनारूप पर्युषणाके सम्बन्धी लेखकी समीक्षा करके लिख दिखाता हुं-जिप्तमें पहिले जो किशुद्ध समाचारी पुस्तकके बनाने वालेने पर्युषणा सम्बन्धी लेख लिखा है उसीको इस जगह लिखके फिर उसीका खण्डन जैनसिद्धान्तसमाचारी में न्यायांभोनिधिजीने कराया है उसीको लिख दिखाकर उसपर मेरी समीक्षा को लिखुङ्गा सो आत्मार्थी सज्जन पुरुषोंको दृष्टिरागका पक्षको न रखते न्याय दृष्टि से पढ़कर सत्य बातको ग्रहण करना सोही उचित हैं ;-अब शुद्धसमाचारी कारके पर्युषणा सन्बन्धी लेखका पृष्ठ १५४ पंक्ति १५ वी से पृष्ठ १६० की पंक्ति ७ वी तकका (भाषाका सुधारा सहित ) उतारा नीचे मुजब जानो ; शिष्य प्रश्नः करता है कि अपने गच्छमें जो श्रावणमास बड़े तो दूसरे श्रावण शुदीमें और भाद्रपद बढ़े तो प्रथम भाद्रव शुदीमें, आषाढ़ चौमासीसें, ५० में दिनही पयुषणा करना, परन्तु ८० अशीमें दिन नहीं करना ऐसा कोई सिद्धान्तोंमें प्रमाण हैं। उत्तर-श्रीजिनपतिसूरिजी महाराजने अपनी १९ मी समाचारीके बिषे कहा है ( तथाहि ) सावणे भवए वा, अहिग मासे चाउम्मासीओ॥ पसासइमेदिणे, पज्जोसवणा कायवा न असीमे इति ॥ भावार्थः श्रावण और भाद्रपद मास, अधिक हो तो आषाढ़ चौमासीकी चतुर्दशीसें पचाश दिने पर्युषणा करना परन्तु अशीमें दिन न करना । प्रश्नः-जो अधिकमास होनेसे अशीमे दिन पर्युषणा सांवत्सरिक पर्व करते हैं तिसका पक्षको किसीने कोई ग्रन्थमें दूषित भी किया है वा नहीं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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