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________________ [११] हठाग्रह है। इसका विचार तत्वज्ञ पाठकगणको करना चाहिये। . ३-कहते हैं मगर करतेनहीं, यहभी देखिये-आग्रह ! ___अधिकमहीनेके ३० दिनोंको गिनती से छोडदेनेके आग्रह क. रनेवाले दो श्रावण होवे तो भी भाद्रपद् तक ५० दिन हुए ऐसा कहतेहैं, मगर प्रत्यक्ष प्रमाण व न्यायकी युक्तिसे विचारकर देखा जावे तो यह कहना सर्वथा अनुचित मालूम होता है। देखियेकिसी श्रावक या श्राविकाने आषाढचौमासीसे उपवास करने शुरू किये होवें, उसको बतलाईये दो श्रावण होनेपर ५० उपवास कब. पूरे होवेगें और ८० उपवास कब पूरे होवेगे? इसके जवाब में छोटासा बालक होगा वहभी यही कहेगा, कि-५० दिनोंके ५० उपवास दूसरे श्रावणमें और ८० दिनोंके ८० उपवास दोश्रावण होनेसे भाद्रपदमें पूरे होवेंगें । इसीतरह साधुसाध्वीयोंके संयमपालने में, तथा सर्व जीवोके प्रत्येक समयके हिसाबसे ७८ कमोके शुभाशुभ बंधन होने और धार्मिक पुरुषों के धर्मकार्योले कर्मोकी निर्जरा होने में व सूर्यके उदय अस्तके परिवर्तन मुजब दिवसोंके व्यतीत होनेके हि. साबमें , इत्यादि सब कार्यो में दो श्रावण होनेसे भाद्रपद तक ८० दिन कहते हैं । ५० उपवास दूसरे श्रावणभे, व ८० उपवास भाद्रप. दमें पूरे होनेकाभी कहते हैं. और उपवासादि उपरके सब कार्यो में. अधिक महिनेके ३० दिनोंको बीचमें सामील गिनकर ८० दिन कहते हैं, ८० दिनोंके लाभालाभ-पुण्यपापके कार्य भी मंजूर करतेहैं. ऐसेही दो आश्विन होनेसे पर्युषणाके पिछाडी कार्तिक तक १०० दिन होते हैं, उसके १०० उपवास, व १०० दिनोंके कर्मबंधन तथा धर्मकार्य वगैरह सब कार्यों में १०० दिन कहते हैं. और १०० दिनोंको आपभी व्यवहारमें मंजूर करते हैं। उसमें अधिक श्रावणके ३० दिनोंकी तरह अधिक आसोजकेभी ३० दिनोंको गि. नतीमें मान्य करना कहते हैं, मगर दो श्रावण होवे तब भाद्रपद तक ८० दिन होते हैं, व दो आश्विन होवे तब कार्तिक १०० दिन होते हैं उनको अंगीकार करते नहीं. और ८० दिनके ५० दिन व १०० दिनके ७० दिन कहते हैं यह जगत विरुद्ध कैसा जबरदस्त आग्रह कहा जावे इसको विवेकी जन स्वयं विचार सकते हैं। ४- कालचूलारूप अधिकमहीना पहिला या दूसरा ? यद्यपि जैनटिप्पणा विच्छेद है, इसलिये लौकिक टिप्पणा मु. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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