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________________ [ २३९ ] रीति किवी थी और इन्हीं गाथाओंकी अनेक पूर्वाचायौने विस्तार करके अच्छी तरहसे टीका बनाई हैं उन सब व्याख्यायों को और सूत्रकारके सम्बधकी सब गाथायों को छोड़करके सिर्फ एक पद लिखा सोभी मास वृद्धिके अभावका था जिसको भी मास वृद्धि होते भी लिखके दिखाना सो आत्मार्थी भवभीरु पुरुषोंका काम नहीं हैं और में इस जगह श्रीउत्तराध्ययनजीस्त्र के २६ वा अध्ययनकी गाथा ११ वीं, से १६ वी तक तथा व्याख्यायों के भावार्थ सहित विस्तार के कारण से नहीं लिख सक्ता हुं परन्तु जिसके देखनेकी इच्छा होवे सो रायबहादुर धनपतसिंहजी की तरफ से जैनागम संग्रहका ४१ वा भाग में श्रीउत्तराध्ययनजी मूलसूत्र तथा श्रीलक्ष्मीवल्लभगणिजी कृत वृत्ति और गुजराती भाषा सहित रूपके प्रसिद्ध हुवा हैं जिसके २६ वा अध्ययन में साधुसमा वारी संम्बधी पौरषीका अधिकार पृष्ठ १६६ सें १६९ तक गाथा ११वी से १६वी तथा वृत्ति और भाषा देखके निर्णय करलेना और जिसके पास हस्तलिखित पुस्तक मूल की तथा वृत्ति कीहोवे सोभी उपरोक्त अध्ययनकी गाथा और वृत्ति देखलेना और श्रीउत्तराध्ययनजी सूत्रकार श्रीगणधर महाराज अधिक मासको अच्छी तरहसे खुलासा पूर्वक यावत् मुहूर्त में भी गिनती करके मान्य करने वाले थे तथा अधिक मासके भी दिनोंकी गिनती सहित सूर्यचार को मान्यने वाले थे इसलिये सूत्रकार गणधर महाराजके अभिप्रायः के सम्बन्धका सब पाठको छोड़के एकपद लिखनेसें अधिक मान में सूर्य चार नहीं होता है ऐसा तीनों महाशयों का लिखना कदापि सत्य नहीं होशक्ता हैं अर्थात् सर्वथा मिथ्या हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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