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________________ [s] गया है. उसको समझकर उनके अनुयायी विद्वान् पुरुषों को उनकी सब भूलोंकों क्रमशः अवश्य सुधारना योग्य है, तथा इस ग्रंथ मैभी जो कोई बात शास्त्र विरुद्ध देखने में आवे तो जरूर मेरेको लिख भेजना. लिखने वालेका उपकार मानकर अपनी भूलको अवश्य स्वीकार करूंगा, और दूसरी आवृत्ति में सुधार लूंगा. यह ग्रंथ विलंब से प्रकट होनेका कारण । इस ग्रंथ की रचनाका कारण ग्रंथकी आदि मेंही लिखा है तथा सु. बोधिकादिककी खंडनमंडन संबंधी भूलोंका कारण प्रगटही है । और यह ग्रंथ छपने पर शीघ्रही प्रगट होने वालाथा. मगर कितनेही म हाशयका कहना था कि यदि मुनिमंडलकी सभा में, विद्वानोंकी सम क्ष, इस विषयका, शास्त्रार्थसे निर्णय हो जावे तो बहुत अच्छा होवे, और ३ वर्ष पहिले दो भाद्रपद होनें से इसके निर्णय की चर्चा खूब जोरशोर से चली थी, तब मैने भी मुंबई से 'पर्युषणा निर्णयका शास्त्रार्थ' करने संबंधी विज्ञापन छपवाकर जाहिर किया था. उसपर आनंदसागरजी और शांतिविजयजी हां हां करने लगेथे तो भी आडी २ बातें निकालकर चुप बैठ गये, इसका खुलासा आगे लिखूँगा. और अन्य कोई भी मुनि सभामें निर्णय करने को तैयार नहीं हुए. इसलिये अब यह ग्रंथ इतने विलंब से प्रकाशित किया जाता है. ग्रंथ एकहजार पृष्ठके लगभग होनेसे, ४ भागों में अनुक्रमसे यथा अवसर प्रकट होता रहेगा. और मंगवाने वाले साधु-साध्वी श्रावकश्राविका यति-श्री पूज्य-ज्ञान भंडार-लायब्रेरी और साक्षर वर्ग सबको बिना किंमत से भेट भेजा जायेगा । १- एक बम ॥ तपगच्छके मुनिमहाराजोंने अपनी समाजमें यहभी एक तर हका वहम ठसा दिया है, कि-अधिकमहीने में विवाह सादी वगैरह शुभ कार्य लोग नहीं करते हैं, उसी तरह अधिकमहीने में पर्युषण पर्वादि धार्मिक कार्यभी नहीं हो सकते. मगर तत्व दृष्टिले विचार किया जावे तो यहभी एक तरहका एकांत आग्रहसे झूठाही वहेम है, क्योंकि विवाहादि मुहूर्त्तवाले कार्य तो मास, पक्ष, तिथि, वार, नक्षत्रादि देखकर, वर्ष छ महीने आगे पीछेभी करते हैं. परंतु बिना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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