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________________ [ १२१ ] दिन वर्षाकालमें रहनेका सर्वथा प्रकार से अवश्यही निश्चय करना सो 'पज्जोसवणा' अर्थात् पर्युषणा है जिसमें भाद्रपद शुक्ल पञ्चमीके पहिले ५० दिनके अन्दर में योग्य क्षेत्राभावादि कारणे दूसरे स्थानमें भी विहार करके जाना बन सकता है परन्तु पचासमें दिन योग्य क्षेत्रके अभावसै जङ्गलमें वृक्ष नीचे भी अवश्यही पर्युषणा करे यह मुख्य तात्पर्य है । और चन्द्र संवत्सरमें पचास दिने पर्युषणा करनेसे पीखाडी 90 दिन रहते हैं तैसे ही मास वृद्धि होनेसे अभिवर्द्धित संवत्सर में बीस दिने पर्युषणा करनेसे पीछाडी १०० दिन रहते हैं सो उपरमें अनेक जगह खुलासा पूर्वक छप गया है तैसेही इन्हीं वृत्तिकार महाराजने श्रीस्थानांगजी सत्रको वृत्ति कहा है जिसका यहाँ पाठ दिखाता हुँ । छपी हुई श्रीस्थानांगजी सूत्र वृत्तिके पृष्ठ ३६५ का तथाच तत्पाठःपढमपाउ संसित्ति ॥ इहाषाढ श्रावणौ प्रावृट् आषाढस्तु प्रथम प्रावृट् ऋतुनां वा प्रथम इति प्रथमप्रावृट् अथवा चतुर्मासप्रमाण वर्षाकालः प्रावृडिति विवक्षित स्तत्र सप्ततिदिनप्रमाणे प्रावृषे द्वितीये भागे तावन्नकल्पत एव गन्तु प्रथम भागेऽपि पञ्चाशद्दिनप्रमाणे विंशति दिनप्रमाणे वा म कल्पते जीवव्याकुलभूतत्वा दुक्तंच एत्थय अणभिग्गहियं, बीसरा इसवी सईमासं । तेणपरमभिग्गहियं गिहिनायंकत्तियंजावति ॥ ९ ॥ अनभिगृहीत, मनिश्चित मशिवादिनि निर्गमभावात् आइच असिवादिकारणेहिं, अडवाबासंगठु- आर ं ॥ अभिवढियंनिवीसा, इहरेसु सवीसईनासो ॥१॥ यत्र संवत्सरेऽधिकमासको भवति तत्राषाढ्याः विंशतिदिनानि याब दनभिग्रहिक आवासो ऽन्यत्र " १६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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