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________________ [ ११० ] जाती हैं ऐसी गृहस्थी लोगोंके जानी हुई पर्युषणा यावत् कार्तिक पूर्णिमा तक याने जो अभिवर्द्धितमें वीशदिने श्रावण शुक्रपञ्चनीको जानी हुई पर्यषणा करे सो कार्तिक पूर्णिमा तक १०० दिन उसी क्षेत्र में ठहरे और चन्द्रमें पचास दिने भाद्रपद शुक्लपञ्चमीको जानी हुई पर्युषणा करे सो कार्तिक पूर्णिमा तक 90 दिन उसी क्षेत्रमें ठहरे । उपरोक्त श्रीतपगच्छके श्रीक्षेमकीर्त्तिसूरिजी कृत पाठके भावार्थ: मुजबही अनेक जैन शास्त्रोंमें खुलासा पूर्वक व्याख्या हैं सो उपरमें श्रीनिशीथचूर्णि श्रीदशाश्रुतस्कन्ध चूर्णि श्रीकल्पसूत्रकी व्याख्यों वगैरहके पाठ भी छपगये हैं और कितनेही शास्त्रोंके पाठ इस ग्रन्थ में विस्तारके भय से नही छपाये हैं सो अबी मेरे पास मोजूद है जिसमें भी उपर मुजब ही चतुर्मासी में पर्युषणा संबन्धी अज्ञात और ज्ञातकी खुलासा पूर्वक व्याख्या हैं । उपरके पाठसें श्रावण तथा भाद्रव मासका नाम नही हैं परन्तु वीश तथा पचास दिनका नाम लिखा है जिससे वीश दिनकी गिनती आषाढ़पूर्णिमासे श्रावण शुक्ल पञ्चमीको और पचास दिनकी गिनती भाद्रपद शुक्लपञ्चमीको पूरी होती हैं इस लिये भावार्थ में श्रावण तथा भाद्रपदका नाम तिथि सहित लिखा जाता है -- उपरोक्त पाठ में आषाढ़ चौमासीसे कार्तिक चौमासी arat व्याख्या दिनांकी गिनती सहित खुलासा पूर्वक पर्युषण सम्बन्धी करी है परन्तु आषाढ़ चौमासीसे इतने दिन गये बाद पर्युषणामें वार्षिक कृत्य सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि अमुक दिने करे ऐसा नही लिखा हैं परन्तु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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