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________________ [ १०५ ] आवलिका होती हैं १,६१,१७,२१६ आवलिका जाने सें एक मुहूर्त होता है त्री मुहूर्त्त से एक अहोरात्रिरूप दिवस होता है ऐसे पन्दरह दिवसोंसे एकपक्ष होता हैं दो पक्षसे एकनास होता है इसी तरह में अनुक्रमे वर्ष, युग, पूर्वाङ्ग, पूर्व, पल्योपम, सागरादि कालकी व्याख्या अनेक जैन शास्त्रों में विस्तारपूर्वक प्रसिद्ध है । अब इस जगह पाठकवर्ग सज्जन पुरुषोंसे मेरेको इतना ही कहना है कि श्रीदशाश्र तस्कन्धचूर्णि में और श्रीनिशीथ चूर्णिमें खुलासा पूर्वक अधिकमासको निश्चयके साथ प्रमाण करके गिनती में भी लिया है और अभिवर्द्धित संवत्सर में वीशदिने तथा चन्द्रसंवत्सर में पचास दिने निश्चय पर्युषणा कही हैं और मासवृद्धिके अभावसेही भाद्रपद शुक्लचतुर्थीको पचास दिनके अन्तर में कारणयोगे श्रीकालकाचार्य्यजीने पर्यart fear सो दिखाया है और पचास दिने योग्यक्षेत्र के अभावसे जंगलमें वृक्ष नीचे भी पर्युषणा करनी कही है परन्तु पचास दिनको रात्रिको उल्लङ्घन करना भी नही कल्पे इत्यादि विस्तारपूर्वक संपूर्ण सम्बन्धके दोनो पूर्वघर महाराज कृत पाठ उपरोक्त छपगये है जिसको विचारो और श्रीधर्मसागरजी तथा श्रीजयविजयजी और श्रीविनयविजयजी इन तीनों महाशयोंने दोनों चूर्णिकार पूर्वधर महाराजके विरु द्वार्थनें वर्तमान में मासवृद्धि दो श्रावण होने से भी आषाढ़ चौमासीसे यावत् ८० दिने भाद्रपद में पर्युषणा सिद्ध करनेके लिये आगे और पीछेके सम्बन्धके पाठको और अधिकमासके प्रमाण करनेके पाठको छोड़कर अधूरा बिना सम्बन्धका थोडासा पाठ लिखके भोले जीवोंको शास्त्रोंके नामसे पाठ १४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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