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________________ [ ७३ ] है। ऐसा नहीं कहना क्योंकि चतुर्नासिक कृत्य आषाढ़ादिमासोंमें करने का नियम हैं तिस कारणसें दो आश्विनमास होवे तोभी कार्तिक चौमासी कार्तिक शुदी चतुर्दशीके दिन करना योग्य है जिसमें अधिकमास कालचूला होनेसे दिनों की गिनतीमें नही आता है इसलिये दो आश्विन होवे तो भी कार्तिक १०० दिने चौमासी किया ऐसा नही समझना किन्तु ७० दिने ही किया गया ऐसा कहनेसे श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके व वनमें बाधा नहीं आती हैं इस कारण से जैसें चतुर्मासिक आषाढ़ादि मासोंमें करने का नियम हैं तैसे ही पर्युषणा भी भाद्रपद मासमें करने का नियम हैं जिससे उसी ( भाद्रवे ) में करना चाहिये जिसमें भी अधिकमास आवे तो दिनोंकी गिनती में नही लेनेसे दो श्रावण होते भी भाद्रवेमें पर्युषणा करनेसे ५० दिने ही किया ऐसा गिना जाता है इस लिये ८० दिनोंकी वार्ता भी नही समझना तथा पर्युषणा भाद्रवेमें करनेका नियम है सो ही बहुत आगामें कहा है तैसा ही श्रीविनयविजयजीने यहाँ श्रीपर्युषणा कल्पचूर्णिका तथा श्रीनिशीथ चूर्णिका पाठ लिख दिखाया जिसमें भी श्रीकालका वार्यजी महाराज आषाढ़ चतुर्मासीके पीछे कारणयोगे विहार करके सालिवाहनराजा की प्रतिष्ठानपुर नगरीमें आने लगे तब राजा और श्रमण सङ्क आवार्यजी महाराजके सामने आये, और महा महोत्सवपूर्वक नगरीमें प्रवेश कराया और पर्युषणा पर्व नजिक आये थे जब आचार्यजी महाराजके कहनेसे भाद्रव शुदी पञ्चमीके दिन पर्युषणा करने के लिये सर्व सङ्घने मंजूर किया तब राजाने कहा कि महाराज उसी ( पञ्चमी ) के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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