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________________ [ ११ ] णमित्यादि ॥ श्रीनिशीथ चूर्णो दशमोद्द शके एवं यत्र कुत्रापि पर्यूषणानिरूपणम् तत्र भाद्रपदविशेषितमेव नतु काप्यागमे भवयपंचमी पज्नोसविज्ज इति पाठवत् अभिवद्विअ वरिसे सावणसुद्धपंचमीए पज्जोसविज्जइति पाठ उपलभ्यते ततः कार्तिकमासप्रतिबध चतुर्मासिकः कृत्य करणे यथा नाधिकमासः प्रमाणं तथा भाद्रमासप्रतिबद्ध पर्युषण करणेऽपि नाधिकमासः प्रमाणमिति त्यजकदाग्रहम् । श्रीविनयविजयजी कृत उपरके पाठका संक्षिप्त भावार्थ:अन्तरा वियसेत्ति इत्यादि कहने से आषाढ़ पूर्णिमासे पचास में दिन भाद्रपद शुक्ल पञ्चमी जिसके अन्तरमे कारण योगे पर्युबणा करना कल्पे परन्तु पञ्चमीको उल्लङ्घन करना नही कल्पे वर्षाकालमें सर्वथा एकस्थान में निवास करना सो पर्युषणाजिसमें योग्यक्षेत्र के अभाव से पांच पांच दिनकी वृद्धि करते दशपर्वतिथि में यावत् पचासमें दिन भाद्रपद शुक्ल पञ्चमीको परन्तु श्रीकालकाचार्य्यजी से चतुर्थी को गृहस्थी लोगोंकों साधुके वर्षाकालका निबास अर्थात् पर्युषणाकी मालुम होती थी सो चन्द्रसंवत्सरको अपेक्षा परन्तु मास वृद्धि होनेसें अभिवर्द्धितनाम संवत्सर में वीशदिने गृहस्थीलोगोंको साधुके निवास (पर्युषणा) की मालुम होती थी सो जैन टिप्पनाके अनुसारे एकयुगके मध्य में पोषकी तथा अन्त में आषाढ़की वृद्दि होती थी इसके सिवाय और मासोंके वृद्धिका अभावथा तब चन्द्रमें पचास दिनका तथा अभिवर्द्धितमें वो दिनका नियम था, परन्तु अब वर्त्तमानकाले जैन टिप्पना नही वर्तता है तथा लौकिक टिप्पनामें हरेकमासोंकी वृद्धि होती है इस लिये पंचाशतैश्च दिनैः पर्युषणायुक्तेति वृधः - अर्थात् इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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