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________________ [ ६७ ] श्रीकान्तिविजयजी तथाने श्रीअमरविजयजीने बनाई है ऐसा उत्त पुस्तकमें छपा है फिर श्रीआत्मारामजीका नाम उपरमें क्यों लिखा है और पर्युषणा विवार नामकी छोटी पुस्तकके लेखक भी श्रीधर्मविजयजी नहीं है किन्तु उनके शिष्य विद्याविजयजी हैं फिर श्रीधर्मविजयजीका नाम उपरमें क्यों लिखा है। ___उत्तरः-मो देवानुप्रिय ! मैंने उपरमें श्रीआत्माराम जीका और श्रोधर्मविजयजीका नाम लिखा है जिसका कारण यह हैं कि जैन शास्त्रानुसार गुरु महाराजकी आज्ञा विना शिष्य कोई कार्य नही कर सकता हैं इप्त लिये शिष्यके जो जो कार्य करने की जरूरत होवे सो सो गुरु महाराजर्स निवेदन करे जब गुरु महराज योग्यता पूर्वक कार्य करने की आज्ञा दें। तब शिष्य गुरु महाराजकी आज्ञानुसार जो कार्य करना होवे सो कर सकता हैं उन कार्य के लाभालाभके अधिकारी गुरु महाराज होते हैं परन्तु शिष्य गुरु महाराजकी आज्ञानुप्तार कार्यकारक होता है इस लिये उप्त कार्यकों कराने के मुख्य अधिकारी गुरु महाराज हैं इस न्यायके अनुतार प्रथम श्रीकान्तिविजयजीने तथा श्री. अमरविजयजीनें, जैन सिद्धान्त समाचारीकी पुस्तक वनानेके लिये श्रीआत्मारामजीसे आज्ञा मांगी होगी और बनाये पीछे भी अवश्यमेव दिखाई होगी जिसको श्रीआत्माराम जीने पढ़के छपानेकी आज्ञा दिवी होगी तब छपके प्रसिद्ध हुई है जो श्रीआत्मारामजी बनानेकी तथा छपाके प्रसिद्ध करनेकी आज्ञा न देते तो कदापि प्रसिह नही हो सकती इस लिये जैन सिद्वान्त समाचारीकी पुस्तकके प्रगटकारक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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