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________________ [ ५६ ] कालचला कहके गिनती में नही लेते हैं और निषेध भी करते है। जिन्होंको मेरा इतना ही पूछना है कि आप लोग अधिक मासको कालचला जानके गिनती नही करते हो तो अभिवति नाम संवत्सर कैसे कहते हो और अभिवर्द्धित नाम सवत्सर तो कालचूलारूप अधिकमास ज्यादा होनेसै तेरह चन्द्रमासोंकी गिनती करनेसे ही होता है तथाहि-- अभिवर्तीत्यभिवतिः अभिवड़ितश्चाप्तौ संवत्प्तरोगभिवहितसंवत्तरः अभिवर्द्ध तश्चात्राभिवृद्धिरूपः अभिवृद्धिस्तु अधिकमासे नैव बोधव्य अनयारीत्या अयं संवत्सर अन्वर्थसंज्ञां लब्धवान् अग्वर्थसंज्ञायाः कारणतातु अधिकमासनिष्ठेव कारणत्वावच्छिन्नस्तु शिरोमौलिमुकुटहीरायमाणोऽधिकमास एव अधिकमासनिरुक्तिश्चेत्थं यतोत्र संवत्सरे द्वादशमासेभ्योऽधिकः पतति अतोऽधिकमासः एतद्गणनामन्तरेण तु अन्वर्थसंज्ञायारसङ्गत्यापत्तिरेवेति ध्येयम् । . . ___ अर्थः जो और संवत्सरोंकी अपेक्षासें ज्यादा हो याने अधिक महिनावालो होय सो अभिवति संवत्सर इस वत्सरमें वृद्धि जो है सो अधिकमास ही करके है इस कारणसे इस संवत्सरका अर्थानुसार अभिवहित नाम हुवा अर्थानुसार अभिवर्द्धित नाम रखने में अधिकमास कारण हुवा और अभियर्द्धितनाम कार्य हुवा इनोंका कार्य कारण भाव सिद्ध हुवा कारणताधर्मयुक्त होनेसें यह अधिकमास सब मासोंके मस्तकके शोभा करने वाला जो मुकुट जिसकी शोभा करने वाला जो हीरारत्न उसकी तुल्य हुवा और जिस कारण से इस महिने का नाम अधिकमास हुवा सो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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