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________________ [ ४ ] और गिनती भी करने योग्य है जिसका कारण शास्त्रोंके प्रमाण सहित दिखाते हैं श्रीजिनदास महत्तराचार्य्यजी पूर्वधर महाराज कृत श्रीनिशीथ सूत्रकी चूर्णि श्रीमोहनलालजी महाराजके सुरतका ज्ञानभंडार से आई थी जिसके प्रथम उद्देशेके पृष्ठ २१ में तत्पाठ इयाणिं चूलेति दारं ॥ णाम ठवणा गाहा णिरकेव गाहा ॥ कंठा ॥ णाम ठवणाउयाउ दवचूला दुविहा आगमतो णो आगमतोय आगमउ जाणए अणुवउते गो आगमतो जाणय भव सरीरं जाणयभवसरीरवइरित्ता तिधा य दवचूला गाहा पुवइ ॥ कंठं ॥ पढमो वसो वधारणे वितिउरु मुवये पुछदे जहा संखंनि ॥ उदाहरणा ॥ सचित्तचूड़ा कुक्कटला सा मंसपेसी चेव केवला लोकप्रतिता मीसाचूडा मोरसिहा तस्स मंसपेसीए रोमाणि भवंति अचित्ता चूला मणीकुंता वा आदिसद्दाउ सीहकस पासाद धूभअग्गाणि ॥ दवचूलागता || इदाणि खेत्तचूला सा तिविहा ॥ अह तिरिय उढ्ढ । गाहा। अह इति अधोलोकः तिरिय इति तिरियलोकः उद् । इति ऊङ्घ लोकः लोगस्स सद्दो पत्तेगं चूला इति सिहाहोंति । भवति । इमाइति प्रत्यक्षो तु शब्दो क्षेत्रावधारणे अहोलोगा दीण पच्छद्ध ेण जहा संखं उदाहरणा सीमंतग इति सीमंतगो णरगो रयणप्पनाय पुढवीउ पढमो सो अह लोगस्त चूला । मंदरोमेरु सो तिरियलोगस्सचूलातिक्रान्तत्वात् अहवा तिरिय लोगपति ठियस्स मेरोवरि चत्तालीसं जोयणा. चूला सो तिरिय लोगचूला वसद्दो समुच्चये पाय पूरणे वा इसित्ति अप्पभावे पइति प्रायो वृत्याभार इति भारक्क ं तस्स पुरिसस्त गायं पाय सो इसिणयं भवति जाव एवं ठितासा पुढवी ७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat w . www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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