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________________ ( ४६ ) और भी अधिक मासकी गिनती प्रमाण करने सम्बन्धी सूत्र, निर्युक्ति, साध्य, चूर्णि वृत्ति और प्रकरणादि शास्त्र के पाठ मौजूद हैं परंतु विस्तार के कारण से यहां नहीं बिताहू तथापि बिवेकी जनता उपरोक्त पाठार्थोंसे भी स्वयं समझ जायेंगे । अब इस जगह जिमाज्ञा विरुद्ध प्ररूपणा से तथा वर्तने बर्तानेसे संसार वृद्धिका भय रखनेवाले और जिनाशाके आराधक आत्मार्थी निष्पक्षपाती सज्जन पुरुषों को में निवेदन करता है कि देखो उपर में श्रीचन्द्रमष्टित्तिमें तथा श्रीसूर्य मसिह सिमें सर्व ( अनन्त ) श्रीतीर्थङ्कर महाराजी के कथ मानुसार श्रीमलयगिरिजीने। तथा श्रीसमवायाङ्गनी सूत्र में श्रीगणधर महाराज श्रीसुधर्मस्वामीजीने और श्रीसमवायाङ्ग जी सूत्रको वृत्ति में श्रीखरतरगच्छ के श्री अभयदेवस रिजीने और श्रीप्रवचनसारोद्वार में श्रीतपगच्छ के पर्वच श्रीनेमिचन्द्र सूरिजीने । तथा श्रीवृहत्कल्पवृत्ति में श्री तपगच्छके श्रीक्षेमकीर्ति सूरिजीने इत्यादि अनेक शास्त्रों में अधिकमासको प्रमाण करके गिनती में मंजूर किया हैं जैसे बारे मासोकी गिनती में कोई न्यन्याधिक नहीं हैं जैसे ही अधिकमास होनेसे तेरहमालांकी गिनती में भी कोई न्यन्याधिक नही हैं किन्तु सबी ही बरोबर हैं से। उपरोक्त पाठार्थोंसे प्रत्यक्ष दिखता है सेा विशेष करके अधिक मासको भी मुहूलॉमें, दिनोंमें, पक्षों में, मासों में वर्षोंमें, गिनकर पांचसंवत्सरे के एक युगकी गिनती के दिनांका, पक्षांका, मासोंका, वर्षौंका प्रमाण श्री अनन्ततीर्थङ्कर बणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्यों ने और श्री खरतरगच्छ के तथा श्रीतपगच्छादिके पूर्वजोंने कहा है से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat · www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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