SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ३८ ]. ३२।६२ अर्थात् २० दिन ३० घटीका और ५८ पल प्रमाणे एक चन्द्रमास होता हैं इसको बारह चांद्र नासों से बारह गुणा करने से एक चन्द्रवत् वरमें तीनसे चौपन संपूर्ण अहोरात्रि और एक अहोरात्रिके बालठ भाग करके बारह भाग ग्रहण करनेसे ३५४।१२।६२ अर्थात् ३५४ दिन ११ घटीका और ३६ पल प्रमाणे एक चन्द्र संवत्तर होता हैं और जिप्स संवत्सरमें अधिकमास होता हैं उसी में तेरह चन्द्रमास होने में अभिवहित नाम संवत्सर कहते हैं जिसका प्रमाण तीनसे तैयाशी अहोरात्रि और एक अहोरात्रिके बासठ भाग करके चौमालीस भाग ग्रहण करनेसे ३-३। ४४।६२ अर्थात् ३८३ दिन ४२ घटीका और ३४ पल प्रमाणे एक अभिवति संवत्सर तेरह चन्द्र मासोंकी गिनतीका प्रमाण में होता हैं इस तरह के तीन चंद्र संवत्सर और दोय अभिवद्धित संवत्सर एसे पांच संवत्सरों में एक युग होता हैं अब एक युगके सर्वपर्वो की गिनती कहते हैं प्रथम चन्द्र संवत्सरके बारहमास जिसमें एक एक मामकी दोय दोय पर्वणि होनेसे बारहमासों की चौवीश ( २४ ) पर्वणि प्रथम चन्द्र संवत्सरमें होती हैं तैसे ही दूसरा चन्द्र संवत्सरमें भी २४ पर्वणि होती हैं और तीसरा अभिवर्द्धित संवत्सरमें छवोश ( २६ ) पर्वणि मासवृद्धि होने से तेरहमाप्तोंकी होती हैं तथा चौथा चन्द्र संवत्सरमें २४ पर्वणि होती हैं और पांचमा अभिवद्धि तसंवत्सरमें २६ पर्वणि होती हैं सो कारण उपरके दोनू पाठमें कहा हैं इन सर्व पर्वो की गिनती मिलने पांच संवत्सरोंके एक युगकी एकसो चौवीश ( १२४ ) पर्वणि अर्थात् पाक्षिक होती हैं यह १२४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy