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________________ [[११२ ] अभिप्रायविरुद्ध होकर सामायिकमें प्रथमइरियावही पीछेकरेंमितेका स्थापन करनेके लिये 'खरतरगच्छ समीक्षा' में अनेक तरहले शास्त्रविरुड व कुयुक्तियों से अनर्थ किये हैं, उसका खुलासा ऊपर के लेख पाठकगण स्वयं विचार लेंगे. इसी तरहसे आनंदसागरजीने ' धर्म संग्रह ' की प्रस्तावना में, चतुरविजयजीनें ' संबोधसत्तरकरण वृत्ति' की टिप्पणिकामे, श्रीकांतिविजयजी अमरविजयजीने 'जैनसिद्धांत सामाचारी' में, धर्मसागरजीने इरियावही षत्रिंशिका प्रवचन परीक्षादिकमें और भी कोई भी महाशय कोई भी ग्रंथ में सामायिकमें प्रथम करेमिमंते पीछे इरियावही करनेका निषेधकरके, प्रथम इरियावही पीछे करेमिभंते स्थापन करनेवाले सब शास्त्र विरुद्ध प्ररूपणा करनेवाले उपरके लेखसे समझ लेने चाहिये. और पर्युषणासंबंधी, तथा छ कल्याणक संबंधी भी न्यायरत्नजीने अनेक शास्त्रविरुद्ध और कुयुक्तियोंके संग्रहसे ऐसे ही अनर्थकिये हैं, उन सबका खुलासा समाधान पूर्वक निर्णय इसी ग्रंथमें और इस ग्रंथके प्रथम भागकी भूमिकाके ४७ प्रकरणोंमें और सुबोधिकादिककी २८ भूलोवाले लेखमें अच्छी तरहसे खुलासा सहित छप चुका है । इसलिये यहां पर फिरसे विशेष लिखने की कोई जरूरत नहींहै, सत्य तत्त्वाभिलाषी पाठक गण वहांसे समझ लेंगे । औरभी न्यायर जीने श्री अभयदेवसूरिजी संबंधी व तिथि संबंधी जो जो शास्त्रविरुद्ध बातें लिखी हैं, उन सबका खुलासा श्रीमान् पन्यासजी श्री केशर मुनिजीनें 'प्रश्नोत्तरमंजरी' के तीनों भागो में अच्छी तरहसे छपवाकर प्रसिद्ध किया है, उनके वांचनेसे सब खुलासा हो जावेगा. और मैं भी तीसरे भागकी उद्घोषणा में थोडासा नमूनारूप लिखूंगा तब वहां जैन मुनियोंको रेल विहार निषेध, व व्याख्यान के समय मुह पत्तिका बांधना और देशकालानुसार विशेष लाभ जानकर स्त्रीपुरुषों की सभा में साध्वियोंको धर्म शास्त्रका व्याख्यान करना [ धर्म का उपदेश देना ] वगैरह बातों संबंधीभी खुलासा लिखने में आवे गा. पाठक गण वहांले सर्व निर्णय समझ लेना. इति शुभम्. विक्रम संवत् १९७८ वैशाख वदी पंचमी बुधवार. हस्ताक्षर श्रीमान् - उपाध्यायजी श्रीसुमतिसागरजी महाराजके लघु शिष्य मुनि -- मणिसागर, जैन धर्मशाला, खानदेश-धूलिया. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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