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________________ [१०४] शानीजीमहाराज जाने मगर ऐसी २ कुतर्क करके जिनामानुसार प्रत्यक्ष अनेक शास्त्र प्रमाण मुजब सत्य बात परसे भोले जीवोंकी भदा उडादेते हैं, और जिनाशाविरुद्ध कोईभी शास्त्रप्रमाण बिनाही अपने झूठे हठवादके आग्रहकी बातको स्थापन करनेकेलिये शारोंके सत्य२ पाठोपरभी झूठी२ शंका लांकर उत्सूत्र प्ररूपणासे उन्मार्ग को पुष्ट करते हैं, सो यह काम संसार बढानेवाला अनर्थ भूत होनेसे आत्मार्थी भवभिरुयोको तो करना योग्यनहींहै. इसविषयको विशेष तत्वज्ञ पाठक गण स्वयं विचार लेवेंगे. ३५-कितनेक कहते हैं, 'सामायिकमें प्रथम करोमिभंते और पीछे इ. रियावही करनेसंबंधी आवश्यक सूत्रकी चूर्णि-वृहवृत्ति वगैरह शात्रपाठोंमें सामायिकमुहपत्ति पडिलेहणके, सामायिक संदिसाहणेके, सामायिक ठाणेके आदेशलेनेवगैरह सबपी विधिनहींहै,ऐसा कहनेवालेभी प्रत्यक्षही मिथ्या भाषण करके जिनाशाका उत्थापन करतेहैं, क्योंकि देखो-भावकधर्म प्रकरणवृत्ति तथा वंदित्तासूत्रकी चूर्णि वगैरह शास्त्रपाठों में सामायिक मुहपत्ति पडिलेहणके,सामायिक संदिसाहणके, सामायिकठाणेवगैरहके आदेशलेकर नवकारपूर्वक विनयसहित 'करेमि भंते' इत्यादि पाठ उच्चारण करके पीछेसे इरियावही किये बाद स्वाध्यायादि करनेका संक्षेपमेंभी साफ बतलायाहै, उसके भावार्थमगुरुगम्यतासेसामायिक सब पूरीविधि समझना चाहिये. ३६-आवश्यक नियुक्ति, उत्तराध्ययनादि शास्त्रोमे सामान्यताले संक्षेपमें प्रतिक्रमणकी विधि बतलायाहै,परंतु उसका विस्तारपूर्वक विशेष अधिकार भावपरंपरानुसार पूर्वाचार्योंके सामाचारियोंके ग्रंथोसे जानने में आताहै, और उसी मुजबही अभी प्रतिक्रमणकी सर्व. क्रियायें करनेमें आतीहैं मगर कोई अज्ञानी आवश्यकनियुक्ति-उत्तरा. ध्ययनादिशास्त्रोंकी प्रतिक्रमण विधिको अधूरी कहकर निषेधकरें और उसकेविरुद्ध ढूंढियोकी तरह अपनी मतिकल्पना मुजब प्रतिक्रमण की विधिको स्थापन करें, तो आवश्यकादि आगमार्थरूप पंचांगीके उस्थापनसे उत्सूत्रप्ररूपणारूप मिथ्यात्वके दोषके भागी होनापडता. है, तैसेही- आवश्यक चूर्णि, बृहद्वृत्ति वगैरह ऊपरमुजब शासपा. ठोमें सामायिक संबंधीभी सूचनारूप संक्षेपमें सामान्यतासे शास्त्रका र महाराजाने सामायिककी विधि लिखीहै. उसका विस्तारसे विशे. ष भधिकार भावपरंपरानुसार पूर्वाचायोंके सामाचारियोंके ग्रंथों. से जानना चाहिये और उसी मुजबही आत्मार्थी भव्य जीवोंको सा: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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