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[ ९७ २७-कितनेकलोग अपना अलस्य आग्रह छोडसकतेनहीं,व सत्य बात ग्रहणभी कर सकते नहीं, इसलिये भोले जीवोंको अपने पक्षमें लानेके लिये जान बुझकर कुतर्क करते हैं, कि, श्रीआवश्यक सूत्रकी चूर्णि-बृहद्वृत्ति- लघुवृत्ति-पंचाशकचूर्णि-वृत्ति-श्राद्धदिनकृत्यमूप्रवृत्ति-श्रावकधर्म प्रकरणवृत्ति-नवपद प्रकरणवृत्ति-योगशास्त्र वृ-- त्ति वगैरह शास्त्रोंमें सामायिक पहिले करेमिभंतेका उच्चारण करके पीछसे हरियावही करने का कहाहै, सो वह शास्त्र पाठ स्वाध्याय संबंधीहैं ? या चैत्यवंदन-गुरुवंदन संबंधी ? या आलोयणा संबंधी हैं? अथवा सामायिक संबंधीहै! इसकी हमको अच्छी तरहसे मालूम नहीं पडती, उससे वह शास्त्र पाठ सामायिक संबंधीहैं. ऐसा निश्च यनहींहोसकता.इसलिये उनशास्त्रपाठोके अनुसार सामायिक पहि ले करेमिभंते पीछे इरियावही कैसे किया जावे ? ऐसीर कुतर्क कर. तेहैं,सो सर्वथा झूठीहीहैं क्योंकि ऊपरके सर्व शास्त्रपाठोमे श्रावकके १२ ब्रतोंमें ९में सामायिकवतसंबंधी सामायिक करनेके लियेही सा. मायिककी विधिसंबंधी खुलासापूर्वक प्रथम करेमिभंतेका उच्चारण किये बाद पीछेसे इरियावही करनेका लिखाहै,उसके विषयमें सत्य ग्रहण करनेवाले आत्मार्थी भव्यजीवोंको निस्संदेह होनेकेलिये थोरे. से शास्त्रोंके पाठभी यहां पर बतलाते हैं.
२८-श्री यशोदेव सूरिजी महाराज कृत श्री पंचाशक सूत्रकी चर्णिका पाठ देखो
- "तिविहेण साहुणो णमिऊण सामाइयं करेइ 'करेमिभते !सामाइअं' एवमा उच्चरिऊण, तउ पच्छा हरियावहीयाए पडिकमा, आलोएत्ता, वंदित्ता आयरियादि, जहा- रायणिए, पुणरवि गुरु वं. दित्ता, पडिलेहित्ता णिविठो पुच्छति पढति वा" इत्यादि.
२९- श्रीचंद्रगच्छीय श्रीधिजयसिंहाचार्यजी कृत श्रावकातिक्रमण [ वंदिसासूत्र ] की चूर्णिका पाठ भी देखो
___ "वदिऊण स्थाभ वंदणेण गुरुं संदिसाविऊण सामाइय दंडकः मणु कड़िय, जहा- 'करेमिभंते ! सामाइयं, जाव-अप्पाणं वोसिरा: मि' तओइरि पडिकमिय आगमणं आलोएइ, पच्छा, जही-जेई साहुणो वंदिऊण, पढा सुणहवा" इत्यादि.
३०- श्रीलक्ष्मीतिलकसूरिजीकृत श्रावकधर्मप्रकरणवृत्तिका पाठ यहांपर दिखलाताहूं यथा- "अत्र क्रियमाणं श्राद्धानां सामायिक नि' अत्यहं निर्वहति तरस्थानमुपदिशति- .
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