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________________ [१०] वंदितासूत्रचूर्णि श्राद्धदिनकृत्य सूत्रवृत्ति - पंचाशकन्चूर्णि वृत्ति-विचारामृत संग्रह - धर्म संग्रहवृत्ति संबोधसप्तरी प्रकरणवृत्ति-जयसोमोपाध्यायजी कृत 'ईयापथिकी षट्त्रिंशिका विवरण', श्रावकप्रज्ञप्तिवृत्ति इत्यादि अनेक शास्त्रानुसार श्रीजिनदासगणिमहात्तराचार्यजी पू धर, श्रीहरिभद्रसूरिजी, अभयदेवसूरिजी, हेमचंद्राचार्यजी, देवेंद्रसूरिजी, देवगुप्तसूरिजी वगैरह सर्व गच्छोंके प्राचीन पूर्वाचार्यांने सा मायिक विधि प्रथम करेमिभंतेका उच्चारण किये बाद पछिसे इरियावदी करके स्वाध्याय, ध्यानादि धर्मकार्य करनेका बतलाया है, यह बात जिनाशानुसार है. पहिले सर्व गच्छों में इसीप्रकार से ही सामाकिविधि करतेथे, मगर पीछेसे कितनेही चैत्यवासियोंनें अपनीमतिकल्पना मुजब प्रथम इरियावही पीछेकरेमिभंते स्थापन करनेका आग्रहचलाया था, उनकी परंपरा मुजब अबीभी कितनेक महाशय प्रथम इरियावही पीछे करेमिभंतेका स्थापन करने के लिये अन्य कोईभी प्र कट अक्षरवाले शास्त्रप्रमाण न मिलने से महानिशीथ - दशवैकालिकादिकके अधूरे २ पाठोंसे संबंध के विरुद्ध अर्थ करके सामायिकमें प्रथमइरियावही पीछेक रेमिभंते ठहराते हैं, परंतु उससे अनेक दोष आते हैं, उसका विचारभी कभी नहीं करते हैं. देखो - विसंवादी शा' त्रकों व विसंवादी कथन करनेवालोको शास्त्रोंमें मिथ्यात्वी कहे हैं, इसलिये जैन शास्त्रोंको व पूर्वाचार्योंको अविसंवादी कहने में आते हैं, और आवश्यक चूर्णिआदि अनेक शास्त्रों में सामायिक में प्रथमकरेमि भंते पीछेइरियाघहीके पाठमौजूद होनेपरभी महानिशीथ - दशवेकालिकादि से प्रथम इरियावही पीछे करेमिभंते ठहरानेस सर्वश शास्त्रों में विसंवादरूप यह प्रथमदोष आता है. और आवश्यक बडी टीका, महानिशीथका उद्धार, 'दशवैकालिक बडीटीका यह सर्वशास्त्र श्रीहरिभ द्रसूरिजी महाराजने किये हैं, इसलिये आवश्यक बडी टीका के विरु द्ध महानिशीथ से प्रथम इरियावही ठहरानेसे इन महाराजके कथनमें विसंवाद आनेरूप यह दूसरा दोष आता है. आवश्यकादिमें सामाfara नामसे प्रथमकरेमिभंते पीछेइरियावद्दी खुलासा लिखी है, महानिशीथ के तीसरे अध्ययनमें उपधानसंबंधी चैत्यवंदन स्वाध्यायादिकरनेकापाठहै, दशवैकालिककी टीका में साधुके गमनागमन ( जाने आने) संबंधी इरियावही करके स्वाध्यायादि करनेका पाठहै, इसप्रकार भिन्न २ अपेक्षा वाले शास्त्रोंके पाठोंके संबंध विरुद्ध होकर अ धूरे २ पाठोंसे सामायिक में भी प्रथम इरियावही ठहराने से शास्त्रोंकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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