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________________ दशमः १०] भाषाटीकासमेतम्। । (८७) नासिकालक्षणम् । नासिका तु लघुच्छिद्रा समवृत्तपुटा शुभा ॥ स्थूलाग्रा मध्यनम्रा च न शस्ता सुभ्रवो भवेत्॥८९ सुंदर भृकुटीवाली स्त्रीकी नाक छोटे छिद्रकी, (सम) समान तथा वृत्ताकारपुटकी शुभ होती है. यदि नासिकाका अग्रभाग स्थूल तथा मध्यमें गहरा हो तो शुभ नहीं होती॥८९॥ लोहिताग्रा कुंचिता च महावैधव्यकारिणी ॥ दासिका चिपिटाकारा प्रलंवा च कालप्रिया ॥९॥ नासिकाका अग्रभाग लालरंगका एवं मुडा हुवा हो तो महापैघव्य करती है, जिसका नाक चिपिट (मूखीसरीखी) हो तथा अतिलंबी हो तो वह स्त्री(कलिहारी) कलहको प्रिय माननेवाली होवै९०॥ नेत्रलक्षणम्। रक्तान्ते लोचने भद्रे तदन्तः कृष्णतारके ॥ कबुगांक्षीरधवले कोमल कृष्णपक्ष्मणी ॥९१॥ स्त्रीके नेत्रोंके अंतिम भाग रक्त हों, उन नेत्रोंके मध्यवर्ती तारा ( पुतली ) कृष्णवर्णके हों तथा कंबु (शंख ) यद्वा गौके दूधके समान नेत्र श्वेतरंग वाले हों एवं कोमल हों और पलकोंके केश कृष्ण हों तो शुभलक्षण हैं ॥९॥ अल्पायुस्त्रताक्षी च वृत्ताक्षी कुलटा भवेत् ॥ अजाक्षी केकराक्षी च कासराक्षी च दुर्भगा॥ ९२॥ जिस स्त्रीके नेत्र ऊंचे हों वह अल्पायु होती है, जिसके नेत्र गोल हों वह व्यभिचारिणी होवे, जिसके बकरेकेसे अथवा केकरेकेसे अथवा महिषकेसे नेत्र हों वह दुर्भगा होवे ॥९२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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