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________________ (७४) भावकुतूहलम्- [स्त्रीसामुद्रिक:निश्चय है और जिसकी कोमल मांससे संयुक्त दोनहूँ कूखी हों तो शुभफल होता है ॥ ३६॥ विशिरेण मृदुत्वचा सपुत्रा जठरेणातिकृशेन कामिनी सा॥ बहुधातुलभोगलालिता सानुदिनं मोदकसत्फलाशिनी स्यात् ॥ ३७ ॥ जिसका पेट नसोंसे रहित, कोमल त्वचाका तथा कृश हो तो वह कामिनी पुत्रवती होती है और बहुत प्रकारके अनुपम भोगोंसे उसका प्रेम होता है दिनदिन प्रसन्नतापूर्वक मिष्टान्न उत्तम मेवे खानेवाली होती है ॥ ३७॥ घटाकारं यस्या भवति च मृदङ्गेन सदृशं यवाकारं दैवादुदरमहितं पुत्ररहितम् ॥ अभद्रं नो भद्रं तदपि यदि कूष्माण्डसदृशं निरुक्तं तत्त्वज्ञैः कठिनमरुशालेन च समम ॥३८॥ जिस स्त्रीका पेट घडा या मृदंगके आकार हो अथवा दैवयोगसे (यह ) जौके दानेके आकारका हो तो वह पुत्ररहित रहै यदि (कूष्मांड ) कुम्हडेके आकारका पेट हो तो सर्वदा अमंगल देखे कभी मंगल न हो तथा कठोर ( उरुशाल) के समान हो तो भी तत्त्वजाननेवालोंने यह फल कहाहै ॥ ३८॥ कृशतरा त्रिवली सरलावली ललितनर्मविनोदविवर्धिनी ॥ भवति सा कपिला कुटिलाकुला शुभकरी विरला महदाकृतिः ॥ ३९॥ जिसके (त्रिवली) हृदयसे भगपर्यंत रोमवाली बारीक एवं सीधी हो तो वह स्त्री रहस्यके प्रेममें हँसीकी बोलचाल अतिरमणीय करे, प्रेम बढावै यदि वह त्रिवली (कपिलवर्ण) भूरेरंगकी, मुडी हुई, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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