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________________ (६८) भावकुतूहलम् । [स्त्रीसामुद्रिकाअनामिका च मध्या च यदि हीना प्रजायते ॥ तदा सा पतिहीना स्यादित्याह भगवान्स्वयम्॥११ जिसके पैरकी मध्यमा तथा अनामिकाभी छोटी हो तो वह स्त्री पतिहीना होवै. यह भगवान् वेदव्यासने आपही कहाहै ॥११॥ नखलक्षणम् । यदि पादनखाः स्निग्धा वर्तुलाश्च समुन्नताः ॥ ताम्रवर्णा मृगाक्षीणां महाभोगप्रदायकाः ॥ १२॥ यदि स्त्रीके पैरोंके नाखून (स्निग्ध ) चिकने, (वर्तुल) गोलाकार, ऊंचे और तांबेके रंगके समान हों तो मृगाक्षियोंको उत्तम भोग देते हैं ॥ १२॥ पदतलम् । यदि भवेदमलं किल कोमलं कमलपृष्ठवदेव मृगीदृशाम् ॥ अरुणकंकुमविद्रुमसन्निभं बहुगुणं पदपृष्ठमिति ध्रुवम् ॥ १३॥ यदि मृगनयनी स्त्रियोंके पैरोंकी पीठ निर्मल, कोमल, कमलदलके पीठके समान ( अरुण ) गुलाबीरंग यद्वा कुंकुम, वा (विद्रुम) मूंगाके समान हों तो वे बहुत गुणवती होनै यह निश्चय है॥ १३ ॥ अंघ्रिमध्ये दरिद्रा स्यानम्रत्वेन सदाङ्गना ॥ शिरालेनाध्वगा नारी दासी लोमाधिकेन सा॥१४॥ पैरोंकी अंगलियोंके बीच में (नम्र ) गहरा हो तो वह स्त्री सर्वदा दरिद्रा रहै अंगुलियोंपर शिरा (नस) बहुत हों तो मार्ग चलनेवाली होवै और बहुत रोम अंगुलियोंमें हों तो दासी होवे ॥ १४॥ गुल्फलक्षणम्। निर्मासेन सदा नारी दुर्भगा खलु जायते ॥ गुल्फो गूढौं शुभौ स्यातामशिरालौ च वर्तुलौ१५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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