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________________ भाषाटीकासमेतम् । विषयोगभङ्गः । सप्तमे सप्तमाधीशः शुभो वा लग्नचन्द्रयोः ॥ विषयोगमलं हन्ति रहो हरिरिभं यथा ॥ ४९ ॥ दशमः १० ] (६५) यदि जन्मलग्न से सप्तमेश सप्तममें हो अथवा चंद्रमासे सप्तमेश सप्तम हो तथा लग्नचंद्रसे शुभग्रह सप्तम हो वा उसे देखे तो निश्चय विषयोग के फलको नाश करता है जैसे सिंह बलात्कार से हाथीको मारताहै ॥ ४९ ॥ इत्थं विवाहकालेऽपि ज्ञातव्यं लग्नचन्द्रयोः ॥ तदधीनं यतः स्त्रीणां शुभाशुभफलं भवेत् ॥ ५० ॥ विवाहसमय में भी लग्न और चंद्रसे ऐसाही विचार करना, क्योंकि विवाहमुहूर्त के अधीन स्त्रियोंका आजन्म शुभाशुभ है ॥ ५० ॥ वैधव्यभङ्गोपायः । वैधव्ययोगयुक्तायाः कन्यायाः शान्तिपूर्वकम् || वेदोक्तविधिनोद्वाहं कारयेच्चिरजीविना ॥ ५१ ॥ इति भावकुतूहले स्त्रीजातकाध्यायो नवमः ॥ ९ ॥ जिस कन्याके वैधव्ययोग हो उसको प्रथम प्रतिमाविवाह, सावित्रीव्रत, पिप्पलव्रत इत्यादि कल्पोक्तशांति करके वेदोक्त विधिसे उसका विवाह दीर्घायुयोगवालेके साथ करना ॥ ५१ ॥ इति भावकुतूहले माहीघरीभाषाटीकार्या स्त्रीजातकाध्यायः ॥ ९ ॥ दशमोऽध्यायः ॥ कन्यायाः शुभाशुभांगलक्षणानि । शुभलक्षणसम्पन्ना भवेदिह यदाङ्गना ॥ तत्करग्रहणादेव वर्द्धते गृहिणां सुखम् ॥ १ ॥ यदि स्त्री शुभलक्षणोंसे संपन्न होवे तो संसार में उसे विवाहविधि करके ग्रहण करनेसे गृहस्थियोंको सुख बढता है ॥ १ ॥ ५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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