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________________ नवमः ९] भाषाटीकासमेतम् । (६३) मन्देऽष्टमे रोगरतस्य भार्या दिनाधिपे सा परितापतप्ता ॥ अनगरङ्गा परकान्तसङ्गा मृतावगौ सा कुलधर्मभङ्गा ॥४२॥ जिस स्त्रीका शनि अष्टम हो उसका पति रोगयुक्त सर्वदा है, सूर्य अष्टम हो तो सर्व प्रकार संतापोंसे संतप्त रहै, यदि राहु अष्टम हो तो कामदेवके (रंग)क्रीडासे परपुरुषोंका संग करे तथा अपने कुलके धर्मको खोवै ॥४२॥ पुत्रभावविचारः। पंचमे शुभसंदृष्टे पंचमाधिपतावपि ॥ केन्द्रकोणे तदा नारी बहुपुत्रवती भवेत् ॥४३॥ अब स्त्रियोंके संतान भावका विचार कहते हैं-कि, यदि जन्मलनसे पंचमभावमें शुभग्रहोंकी दृष्टि हो और पंचमेश केंद्र, कोण १४७१०।५।९। में हो तो वह स्त्री बहुत पुत्रोंवाली हो ॥१३॥ पंचपुत्रवती जीवे सबले च सिते विधौ ॥ सुतासुखवती पापे नारी संतानवजिता ॥ १४॥ यदि बृहस्पति बलवान होकर पंचममें हो तो पांच पुत्रवाली होवे शुक्र चंद्रमा सबल पंचममें हों तो कन्याओंका सुख होवे,पापग्रह पंचम हो तो संतानके सुखसे हीन रहै. जिन ग्रहोंका जो फल पंचममें कहा है वह उसकी दृष्टि से भी जानना॥४४॥ विषयोगाः। भद्रासापानलवरुणभे भानुमन्दारवारे यस्या जन्म प्रभवति तदा सा विषाख्या कुमारी ॥ पापे लग्ने शुभखगयुतः पापखेटावरिस्थी स्याता यस्या जननसमये सा कुमारी विषाख्या १५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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