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________________ नवमः९ भाषाटीकासमेतम् । (६३) चंद्रराशौ । कुलीरभे भूमिसुतस्य वेश्या शनेः पतिप्राणविधातकौ ॥ गुरोर्गुणवातवती बुधस्य शिल्पक्रियाज्ञा कुलटा भृगोः स्यात् ॥ ३६॥ कर्कराशिके लग्न, चंद्रमा, मंगलके त्रिंशांशकमें हों तो वह स्त्री (वेश्या)पतुरिया होवे, तथा शनिकेमें भर्तीके प्राणघात करनेवाली, बृहस्पतिकेमें गुणसमूहयुक्ता बुधकेमें(शिल्प) कारीगरी जाननेवाली, शुक्रके त्रिंशांशकमें (कुलटा) व्यभिचारकरनेवाली होवै ॥३६॥ सूर्यराशा। सिंहे नराकारधरा कुजस्य वराङ्गना भानुसुतस्य नारी ॥ गुरोरिलाधीशवधूबुधस्य दुष्टा कवरेङ्गजगामिनी स्यात् ॥ ३७॥ सिंहराशिके लग्न, चंद्रमा, मंगलके त्रिंशांशकमें हों तो पुरुषके आकारधारण करे अथवा पुरुष समान पराक्रमी, चतुरा होवै, शनिकेमें (वराङ्गना) वेश्या होवै, बृहस्पतिकेमें पृथ्वीपतिकी वधू होते, बुधकेमें दुष्टा, शुक्रकेमैं अपने पुत्रसे गमन करनेवाली हावै॥३७॥ गुरुराशौ । गुणैर्विचित्रा गुरुभे कुजस्य मन्दस्य मन्दा गुणतत्त्वविज्ञा॥जीवस्य विज्ञा शनिनन्दनस्य शुक्रस्य रम्यापि भवेदरम्या ॥३८॥ बृहस्पतिके राशिमें लग्न, चंद्रमा, मंगलके त्रिंशांशकमें हों तो अनेकगुणोंसे युक्त होवै, शनिकेमें मूर्खा, बृहस्पतिकेमें गुणोंके तत्त्वको जाननेवाली, बुधकेमें पंडिता, शुक्रकेमें सुरूपाभी कुरूपासी प्रतीत हो ॥ ३८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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