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________________ नवमः ९ ] भाषाटीकासमेतम् । ( ५९ ) पापग्रह बलहीन सप्तमस्थान में हों शुभग्रह उसे न देखें तो उस स्त्रीको भर्ताका सुख न होरे । यदि सप्तम स्थानमें मंगल, शुक्र, चंद्रमा हों तो वह स्त्री भर्ता की आज्ञा से व्यभिचारिणी (जारिणी) होवे २८ ॥ पापग्रहे सप्तमलग्नगेहे भर्ता दिवं गच्छति सप्तमाब्दे || निशाकरे चाष्टमवैरिभावे तदाष्टमाब्दे निधनं प्रयाति ॥ २९ ॥ जन्ममें जिसके सप्तम एवं लग्नभाव में पापग्रह हो उसका पति विवाहसे सातवें वर्ष स्वर्ग जावै । यदि चंद्रमाभी ६ । ८ में हो तो आठवें वर्ष में पति मरे ॥ २९ ॥ बालविधवायोगः । सप्तमेशोऽष्टमे यस्याः सप्तमे निधनाधिपः ॥ पापेक्षणयतो बाला वैधव्यं लभते ध्रुवम् ॥३०॥ जिस (बाला) नवयौवनाके जन्मलग्नसे सप्तमेश अष्टम, अष्टमेश सप्तम पापदृष्ट हों अथवा पापयुक्त हों तो निश्चय बालवैधव्य पांवै ३० सप्तमाष्टपती षष्ठे व्यये वा पापपीडितौ ॥ तदा वैधव्यमानोति नारी नैवात्र संशयः ॥ ३१ ॥ जिस स्त्रीके जन्मलग्नसे सप्तम, अष्टम भावों के स्वामी पापपीडित होकर छठे वा बारहवें हों वह निस्संदेह वैधव्य पावै ॥ ३१ ॥ मातृसहितव्यभिचारिणीयोगः । मन्दारराशौ ससिते शशाङ्के खलेक्षिते लग्नगते मृगाक्षी ॥ मात्रा सहैव व्यभिचारिणी स्यान्मदे खलांशे व्रणविद्धयोनिः ॥ ३२ ॥ यदि शनि मंगलकी राशि (१०।११।१।८) यों में शुकसहित चंद्रमा पापद्दष्ट लग्न में हो तो वह स्त्री अपनी मातासहित व्यभिचारिणी होवे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat : www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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