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________________ (४०) भावकुतूहलम्- [राजयोगःकुरुते शिशुम् ॥ द्रविडकेरलदेशसमुद्भवं कृतिवरं च परत्र धनेश्वरम् ॥ ३२ ॥ सर्य मेषका बलवान शनिसे युक्त हो तो बालकको राजा करता है यह योग विशेषतः द्रविड तथा केरलदेशियोंको विशेष राज्यफल करता है तथा उसे अन्यत्र पंडित ‘एवं पराये कमायेहुए धनका स्वामी भी करता है ॥ ३२॥ गुरुकवी यदि तुङ्गगताविमौ जनुषि कण्टककोणगृहाश्रितौ ॥ नृपकुले कुरुतो नृपमन्यथा द्रविण परितो भवतो नरम् ॥ ३३ ॥ जन्मकालमें यदि बृहस्पति शुक्र अपने अपने उच्चराशियोंके केंद्र कोणोंमें हों तो राजकुलका उत्पन्न राजा होवे परन्तु अन्य कुलीय हो तो धनका स्वामी होवै ॥ ३३॥ _ श्रीछत्रयोगः। प्रसूतिकाले यदि सर्वखेटैस्तनुव्ययाऽगाऽर्थगृहस्थितैश्चेत् ॥ पुरातनात्पुण्यत एव पुंसां श्रीच्छत्रयोगं प्रवदन्ति सन्तः ॥३४॥ जन्मसमयमें समस्त ग्रह लग्न व्यय सप्तम धन भावोंमें हो तो यह श्रीछत्रयोग पूर्वजन्मके पुण्यसे मनुष्यका होताहै, यह पंडित कहते हैं ॥ ३४॥ नृपवालाना सुखादियुक्तयोगः। यदा जीवो लग्ने मकरमपहाय प्रवसति तदालं भूपालं नृपतिकुलबालं जनयति ॥ भवत्येवं चन्द्रो जनुषि जनुरङ्गं च कलया परिक्रान्तः केन्द्र नरपतिसुत भूपतिपरस् ॥ ३५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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