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________________ पञ्चमः ५] भाषादीकासमेतम् । (२१) यदि बुध उपलक्षणसे अन्य शुभग्रहभी बलवान हो विशेषतः केन्द्रमें हो तो तथा लाभभावमें सूर्य हो तो संपूर्ण आरिष्टकी मालाको शमित करताहै जैसे गंगाजल समस्त पापजालको शमित करताहै ६ भवति हि जनुरङ्गपो बलिष्ठः सकलशुभैरवला कितो नपापैः॥ इहमृतिमपहाय दीर्घमायुर्वितरति वित्तसमुन्नति विशेषात् ॥७॥ जन्मलग्नेश बलवान हो तथा उसे समस्त शुभग्रह देखें पापग्रह नदेखें तो मनुष्यकी मृत्यु हटाय कर दीर्घायु कर देताहै तथा विशेष करके धनकी उन्नति ( वृद्धि ) भी करता है ॥७॥ सुरपतिगुरुरङ्गधामगामी निजपदगोपि च तुगतामुपेतः॥ बहुतरखगजं निहंति दोषं हरिरिभयूथमुपागतं हि यत् ॥ ८॥ लग्नमें बृहस्पति अपनी राशि वा अंशमें हो अथवा अपने उच्चराशि (४) अंशकमें हो तो बहुत प्रकार ग्रहदोषोंको नाश करताहै जैसे सिंह हाथियों के झुंडमें जाकर उनका नाश करताहै ॥ ८॥ गुरुसितबुधवर्गगा हि पापाःसकलशुभैरवलोकिता यदिस्युः॥ खगकृतमपि वारयति रिष्टंतृणराशीनिव वह्निविन्दुरेकः ॥ ९॥ पापग्रह बृहस्पति, शुक्र, बुधके राशि अंशमें हो तथा उन्हें शुभग्रह देखें तो अरिष्टाध्यायोक्त आरिष्ट दूर होते हैं जैसे अग्निका एक (बिंदु) कण तृण घासके पुंजको फूंक देताहै ॥ ९॥ सहजरिपुगतोऽथलाभगो वा सकलशुभैरैवलोकितो युतोवा ॥ अगरिह विनिहन्ति रिष्टजालं नगजाधीश इवाधिवापराशिम् ॥१०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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