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________________ पंचमः५] भाषाटीकासमेतम् । (१९) ग्रह हो तथा बृहस्पति पंचम भावका स्वामी पापयुक्त हो तो उस मनुष्यके पुत्र न हो अथवा पुत्रहानि होवै ॥५॥ स्त्रीहानियोगः। चेत्कवेरङ्गनागारगामी कुजातो विनाशोऽङ्गनायाः सपापो निरुक्तः॥ नैधने मन्दतः पापखेटा बलिष्ठा नृणां नैधनं सत्वरं संदिशन्ति ॥६॥ ___ इति भावकुतूहले चतुर्थोऽध्यायः॥ ४ ॥ शुकसे सप्तम स्थानमें मंगल पापयुक्त हो तो स्त्रीहानि करताहै और शनिसे अष्टम पापग्रह बलवान हो तो मनुष्योंकी अल्पमृत्यु करतेहैं ॥६॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषार्टीकायां चतुर्थोऽध्यायः ॥४॥ पंचमोध्यायः ॥ ___ अरिष्टभङ्गविचारः। भवतीन्दुरथो शुभान्तराले परिपूर्णः किरणैश्च जन्मकाले ॥ विनिहन्ति तथाशु दोषसङ्घानिभसङ्घानिव केसरी बलिष्ठः ॥ १॥ पूर्वोक्त बालारिष्ट योगोंके परिहार अरिष्टभंगयोग कहतेहैं कि, जन्मसमयमें चंद्रमा शुभ ग्रहोंके बीचमें तथा पूर्णभी हो तो उक्त प्रकार दोषसमूहको नाश करताहै, जैसे बलवान सिंह हाथियोंके झुंडको नाश करताहै, तैसेही यह चंद्रमा करताहै ॥ १ ॥ यदि जनुषि निशाकरोरिभावं गुरुकविचन्द्रजवर्गगो विशेषात् ॥ शमयति बहुकष्टजालमद्धा मुरहरनाम यथाघसंघतापम् ॥२॥ जो जन्ममें चंद्रमा छठे स्थानमें (शुभग्रह ) बृहस्पति, शुक्र, बुधके (वर्ग) राशिअंशकादियोंमें हो तो विशेषतासे बहुत कष्टोंके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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