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________________ वतीयः ३] भाषाटीकासमेतम् । भ्रातृनाशयोगः। अरिनिकेतनगेऽवनिनन्दने भवति राहयुते निधन शनी ॥ निगदितं सहजो जनिमात्रतो यमपुरं व्रजतीति पुरातनैः ॥१३॥ ___ इति भावकुतूहले लगचिह्नाध्यायो द्वितीयः ॥२॥ छठा मंगल तथा अष्टम शनि राहुयुक्त हो तो उसके जन्म होनेहामें उसका भाई मरजावे यह प्राचीनाचार्योंने कहा है ॥ १३॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषा कायां द्वितीयोऽध्यायः ॥२॥ तृतीयोऽध्यायः। बालकस्यारिष्टविचारः। राशि तुहिनकिरणहोरिका च संध्या भूचरमगाः खलखेचरा जनौ चेत् ॥ मृतिरथ जनीशपापखेटेरखिलचतुष्टयगैर्विनाशमेति ॥ १॥ बालकका सबसे प्रथम अरिष्ट विचार करना चाहिये-बाल्यारिटोंसे बचजानेपर अन्य ज्योतिषोक्त फलादेशभी कहा जासकताहै. अरिष्टयोग जानकर उसका उपाय दीर्घायुकारक वैदिकतांत्रिकोक्तं प्रकारसे मनुष्य करसकते हैं. इस निमित्त आरिष्टयोग कहते हैं कि, संध्याकालमें जन्म हो उस समय लग्नमें चंद्रमाका होरा हो तथा पापग्रह राशिके अंत्य नवांशकमें हों तो वह बालक नहीं बचेगा अथवा पापयुक्त चंद्रमा केंद्रमें हो तथा अन्य तीनों केन्द्रोंमें पापग्रह हों तो भी वही फल कहना। पूर्वोक्त योगमें संध्याकही है उसका प्रमाण सूर्यास्तसे वा सूर्योदय डेढघडो पूर्व डेढ पीछेकी समस्त ३ घडी पर्यंत संध्या जानना ॥३॥ अशुभेषु शुभेषु चक्रपूर्वापरभागेषु गतेषु कीट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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