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________________ (१६८) जावकुतूहलम् [दशाफलमदशाके प्रवेश समयमें तत्काल लग्नसे चन्द्रमा बलवान हो तो जीवको उस दशाका फल अतिशुभ होता है, निर्बल होनेमें विपरीत फल होता है. इसी रीतिसे श्रेष्ठ आचार्योने चन्द्रमाके बलानुसार फल कहा है ॥२३॥ बलानुकूलदशाफलम् । बलवन्तो दशाधीशा दिशन्ति सकलं फलम् ॥ निर्बला नैव कुवैति मध्यं मध्यबला नृणाम् ॥२४॥ जो ग्रह बलवान हैं वे अपनी दशामें अपना उक्त फल पूर्ण देते हैं, निर्बल ग्रह पूरा फल नहीं देते,जो मध्यबली हैं वे फल भी मध्यमहीं करते हैं॥२४॥ , भावाधीशानां बलानुसारफलम् । लग्नेशस्य दशाफलं बहुधनं वित्तेशितुः पञ्चतां कष्टं वेति सहोदरालयपतेः पापं फलं प्रायशः॥ तुर्यस्वामिन आलयंकिल सुताधीशस्य विद्यासुखं रोगागारपतेररातिजभयंजायापतेः शोकतास२५॥ लग्रेशकी दशामें बहुत धन होना फल है. द्वितीयेशकी दशामें मृत्यु अथवा कष्ट, तृतीयेशकी दशामें बहुधा पाप फल होता है, चतुर्थेशकी दशामें गृहसुख,पंचमेशकी दशामें विद्याका सुख, षष्ठेशकी दशामें शत्रुभय, सप्तमेशकी दशामें शोक होता है ॥२५॥ मृत्यु मृत्युपतेः करोति नियतं धर्मेशितुः सुक्रियां वित्तं राज्यपते पाश्रयमथो लाभं हि लाभशितुः ॥ रोगं द्रव्यविनाशनं च बहुधा कष्टं व्ययेशस्य वै पूर्वैरङ्गभृतामुदीरितमिदं तन्वादिभावेशजम् ॥२६॥ अष्टमेशकी दशामें मृत्यु निश्चय करताहै. नवमेशकी दशामें -...-... . .. - -- ---- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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