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________________ पोडशः १६ ] भाषाटीका समेतम् । अथ उच्चगतग्रहदशाफलम् । निजोच्चगामिनो यदा तदा तता यशोलता नवाम्बरादिभूषणैः सुखं वराङ्गनागमः ॥ उपेन्द्रतुल्यगजेन्द्रवाजिराजिका रथा वृषाश्च वैरिणः ( १६५ ) तामता कृशा वशा दशा यदा भवेत् ॥ १४ ॥ जो ग्रह जन्म में उच्चका हो उसकी दशा जब हो तब मनुष्यों की यशकी लता बहुत फैलती है, नवीन वस्त्र, भूषण आदियों का सुख मिलता है, श्रेष्ठअंगवाली स्त्री घरमें आती है, उपेंद्र ( श्रीकृष्ण ) यद्वा चक्रवर्ती राजाके समान पराक्रमी एवं ऐश्वर्यवान होता है, श्रेष्ठ हाथी, घोडे, रथ, बैल आदि मिलते हैं शत्रु दुर्बल होकर वश होते हैं ॥ १४ ॥ अथ स्वक्षेत्रगतदशाफलम् | दशा निजागारगतस्य यस्य नवाम्बरागारविहारसौख्यम् ॥ नवीनयोषा बहुभूमिभूषा यशोविशेषादरिवर्गहानिः ॥ १५ ॥ जो ग्रह अपनी राशिका हो उसकी दशा में नवीन वस्त्र, नवीन घर, विहार आदियोंका सौख्य होवे, नवीन स्त्री मिले, बहुत भूमि बहुत भूषण मिलते हैं, शत्रुपक्षकी हानि होती है ॥ १५ ॥ अथ मित्रक्षेत्रगत ग्रहदशाफलम् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 1 कलत्रपुत्रैरपि मित्रपुत्रैरतीव सौख्यं हितराशिगस्य ॥ दशाविपाके वसनं नृपालाद्विशेषतो मानविवर्द्धनं स्यात् ॥ १६ ॥ जो ग्रह अपने मित्रकी राशिमें हो उसकी दशा में स्त्री, पुत्रोंसे तथा मित्र, एवं उनके पुत्रोंसे अतीव सुख मिले, तथा राजासे वस्त्र: खिलत मिले, विशेषतः मानकी वृद्धि होवे ॥ १६ ॥ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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