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________________ षोडशः १६ ] भाषाटीकासमेतम् । (१६३) बृहस्पतिकी दशामें मनुष्यों को राजकुलसे श्रेष्ठ पृथ्वी मिलतीहै. तथा अधिकारिता (प्रधानता) होती है.रमणीय स्त्री मिलती है, सवारीको श्रेष्ठ हाथी मिलता है, रहनेका बहुत बडा घर धनादि शोभासे भूषित रहताहै, सजनोंसे तथा बडे लोगोंसे मित्रता, गुरुजनोंसे गौरव(मान )मिलता है, शत्रुके मुख काले होते हैं रमणीय एवं अतिप्रशंसनीय विद्या होतीहै ॥९॥ अथ शनिदशाफलम् । मिथ्यावादेन तापोरिनरजनकृतातङ्कता रङ्कतावा कृत्या गुप्ता प्रतप्ता मतिरपि कुजनरर्थनाशोजनानाम् । कान्तापत्यादिरोगो जनककनकगोवाजिदन्तावलानां विच्छेदो मित्रभेदो दिनपसुतदशायामनर्थो विशेषात् ॥ शनिकी दशामें मनुष्योंको झुठे कलंक लगनेसे संताप, शत्रुजनके किये उपद्रवसे क्लेश होताहै, अथवा फकीरी (भीख मांगनी) होती है, गुप्तकृत्या (अभिचार ) से संतप्तता रहे, बुद्धिभी सन्तान होजावै,दुष्टजनों करके धननाश होवै, स्त्री पुत्रादिकोंको रोग होवै, पिता, सुवर्ण, गौ, घोडे, हाथियोंका वियोग (नाश) होवै मित्रोंसे शता होवै, विशेष करके इस दशामें अनर्थ होते हैं ॥१०॥ ___ अथ बुधदशाफलम् । दिव्याहारविहारयानजनतापत्यार्थमानांबर- । श्रेणीग्रामनवालयेन्दुवदनालाभं विशेषादिह ॥ सद्भिः सङ्गमनङ्गमङ्गमतुलं प्रोत्तुंगमातंगजं सौख्यं संतनुते दशा सुतयशो वृद्धिं च सिद्धिं विदः११ बुधकी दशामें मनुष्यों को दिव्य (उत्तम) आहार (भोजन) विहार सवारी, मनुष्यसंगम,यदा मनुष्यता, संतान धन,मान, वस्त्र, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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