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________________ षोडशः १६ भाषाटीकासमेतम् । (१६१) अब अन्तर्दशाकी विधि कहते हैं कि, जिस ग्रहकी दशामें अन्तर लाना है उस ग्रहकी दशा वर्षादिको अन्तरवाले ग्रहकी दशासे गुणाकर परमायु १२० से भाग लेकर पूर्वोक्तरीतिसे वर्षादि ४ अंक लेने, वह वर्षादि ग्रहकी अन्तर्दशा होती है. एक ग्रहकी दशामें इसी प्रकार प्रत्येक ग्रहों की अंतर्दशा लेनी. ऐसेही अनुपातक्रमसे विदशायें भी होती हैं ॥४॥ अथ दशाफलानि । तत्रादौ सूर्य्यस्य । उद्वेगिता हृदि तता परितो लतावद्दायादवाद उत | वित्तवियोगयोगाः ॥ चिन्ता भयं नरपतेरपि पाक-।। काले रोगागमो भवति भानुदशाप्रवेशे ॥५॥ सूर्यकी दशाप्रवेशमें मनुष्यके हृदयमें चारों तरफसे वृक्षपर लता जैसी फैलीहुई उद्वेगिता (अनवस्थिति )रहे. भाई,बिरादरीमें कलह होवै, धनहानि होय और धन मिलैभी तो चिंता रहै, राजासे भय होवै, तथा रोगभी होताहै ॥५॥ अथ चन्द्रस्य फलानि । सदा पाके राकेशितुरधिकृतिभूपतिकृता सतां सङ्गो रङ्गोत्सवसवकृतिप्रीतिरतुला ॥ अलङ्कारागारोरिपुकुलमलङ्कारजसुखं . कलावत्यारत्या गम इभरथारामरमणम् ॥६॥ चंद्रमाकी दशामें सर्वदा राजासे अधिकार मिले, सज्जनोंकी संगति नाच रंग आदि उत्सव, नाट्य (नाटक, नट खेल आदि) में, यज्ञकर्मोंमें बडी प्रीति हावै, भूषण वस्त्र आदि अलंकारोंका घर होवै, शत्रुकुलके क्षय होनेसे सुख होवै । षोडशवर्षकी सुरूपा स्त्रीके साथ रतिक्रीडा मिले, हाथी, रथ आदि वाहन मिलें बाग आदियोंमें रमित रहे ॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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