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________________ ( ८ ) भावकुतूहलम् - [ संज्ञाध्याय: पंच पंचाष्टशैलाक्षास्त्रिंशांशा विषमे क्रमात् ॥ भौमभानुजजीवज्ञशुक्राणामुत्क्रमात्समे ॥११॥ त्रिंशांश - विषम राशिक५ अंशपर्यंत मंगलका, पांचसे ऊपर १० अंशपर्यंत शनिका, एवं १८ पर्यंत बृहस्पतिका, २५ लों बुधका, ३० पर्यंत शुक्रका त्रिंशांश और समराशिमें ( व्युत्क्रम) विपरीत जैसे ५ अंशपर्यंत शुक्रका, १२ पर्यन्त बुधका, २० पं० बृहस्पतिका, २५ पं० शनिका, ३० पर्यंत शुक्रका होता है ॥ ११॥ ग्रहदृष्टिविचारः । त्रिंशांशन्यास. ५ ५ ८ ७ ५ ५ ७८ ५५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat बृ. बु. शु शु. बु. बृ.श. '५ १२ २० १३० ५ १२ २० २५ ३० समक्षे. चरणविवृद्धया खेटा दशम सहोत्थे त्रिकोणभे जनने॥ चतुरस्रेथ कलत्रे प्रयताः पश्यन्ति तत्फलं क्रमतः १२॥ ग्रहदृष्टि - जिस भाव में ग्रह है उससे तीसरे दशवें स्थानमें एक चरण दृष्टि देखता है, ९ ।५ में दो चरण ८।४ में तीन चरण सप्तम में पूरे चार चरण दृष्टि देखता है, ऐसाही फल भी दृष्टिको देता है, कोई ऐसाभी अर्थ करते हैं कि, सूर्य तीसरे, चंद्रमा दशममें, मंगल नवमें, बुध पंचममें, बृहस्पति अष्टम में, शुक चतुर्थ में, शनि सप्तम में पूर्ण देखते हैं यह निसर्ग दृष्टि है ॥ १२ ॥ राशीनां चरादिसंज्ञा । चरस्थिरद्विस्वभावाः क्रूराक्ररावजादितः ॥ नरनारी क्रमादेव विषमाख्यसमावपि ॥ १३ ॥ मिथुनं धन्विपूर्वार्द्धतुला कन्याघटा नराः ॥ चतुष्पदा धनुः सिंहवृषमेषा मृगादिमः ॥१४॥ मूलत्रिकोणमर्कादिः सिंहो वृषभ आदिमः ॥ कन्याधनुस्तुलाकुंभः प्रवदंति पुरातनाः ॥ १५ ॥ इति भावकुतूहले संज्ञाध्यायः प्रथमः ॥ १ ॥ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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