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________________ षोडशोः १६] भाषाटीकासमेतम् । (१५९) क्षीणेन्दुरन्त्यगो यस्य रविणा सहितो यदि ॥ तस्य वित्तं हरेद्राजा कुजेनापि युतेक्षितेः ॥ १५॥ ___ इति भावकुतूहले भावविचारे पंचदशोऽध्यायः॥ जिसका क्षीण चंद्रमा व्ययभावमें यदि सूर्यसे युक्तभी हो तो उसके धनको राजा हरलेवमिंगलसे युक्त,दृष्ट होनेमेंभी यही फल है। इति श्रीभावकुतूहले माहीधरीभागाटीकायां भावफलाध्यायः ॥ १५ ॥ षोडशोऽध्यायः॥ अथ दशानयनाऽध्यायः। सूर्यादिग्रहाणां विंशोत्तरीदशा । रसा आशाः शैला वसुविधुमिता भूपतिमिता १६ नवेलाः शैलेला नगपरिमिता विंशातमिताः ॥ खाविन्दावार तमसि च गुरौभानुतनये बुधे केतौ शुक्र क्रमत उदिताः पाकशरदः ॥ १॥ अब दशाविचार कहते हैं कि, सूर्यके ६, चंद्रमाके १ ०,मंगलके ७, राहुके १८, बृहस्पतिके १६, शनिके १९, बुधके १७, केतुके. ७, शुक्रके २० वर्ष नियत है दशा क्रमभी इसी क्रमसेहै ॥ १ ॥ कृत्तिकादिनिरावृत्त्या दशा विंशोत्तरी मता ॥ अष्टोत्तरी न संग्राह्या मारकार्थ विचक्षणैः ॥ २॥ कृत्तिकासे तीन आवृत्ति गिननेसे नक्षत्र दशाधिपति मिलता है जैसे कृत्तिका जन्मनक्षत्रमें सूर्यकी दशा प्रथम,रोहिणीमें चन्द्रमाकी इत्यादि । पुनः दूसरी आवृत्ति उत्तराफाल्गुनीसे, तीसरीमें उत्तरापाढसे गिनना यह विंशोत्तरी ( १२० वर्षके क्षेपककी) दशा कारक मारक विचारमें मुख्य है जाननेवालोंने इसीसे मारक कारक फल कहना अष्टोत्तरी आदिसे नहीं ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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