SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चदशः १५] भाषाटीकासमेतम् । (१५५) भाग्यभावाधिपौ नीचे रविलुप्तकरे सति ॥ अरिंगेहगतो वाऽपि भाग्यहीनो नरो भवेत् ॥४२॥ भाग्यभाव (९) का स्वामी नीचराशिमें हो तथा अस्तंगत अथवा शत्रुराशिमें हो तो मनुष्य भाग्यहीन होताहै ॥४२॥ अथ दशमभावविचारः। कर्मभावाधिपो नीचे षडादित्रयगोऽपि चेत् ॥ करोति कर्मवैकल्यं स्वोच्चस्वक्षपदं विना ॥४३॥ दशमभावका विचार कहते हैं-(इसकी कर्म, राज्य, तात आदि संज्ञा पूर्व कही हैं) इसका स्वामी नीचराशिका त्रिक स्थान ६।८ १२ में हो तो कर्मवैकल्य ( कार्यमें विन, यद्वा कार्यहानि या भाग्यहानि)करता है परन्तु अपने उच्च एवं स्वराशिमें न हो तो॥४३॥ कर्माधिपे केन्द्रनवात्मजः बुधज्यदृष्टे सबले नराणाम् ॥ तुरङ्गमातङ्गनवाम्बराणि भवन्ति नानाधनसंयुतानि ॥४४॥ बलवान दशमेश केंद्र ११४७।१० नवात्मज ९।५स्थानमें हो तथा बुध बृहस्पति उसे देखें तो मनुष्य घोडे, हाथी, नवीन वस्त्रादि और अनेक प्रकारके धनोंसे संयुक्त रहे ॥४४॥ कर्मपः केन्द्रकोणस्थो ज्योतिष्टोमादियज्ञकृत् ॥ कूपायतनकर्ता च देवतातिथिपूजकः॥४५॥ दशमेश केंद्र, कोणमें हो तो ज्योतिष्टोम आदि यज्ञ करनेवाला तथा कूप (कुवा बावड़ी ) धर्मशाला, मठ मन्दिर आदियोंका बनानेवाला होवे तथा देवता एवं अतिथियों (अभ्यागतों) का पूजन करनेवाला होवै ॥ ४५ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy