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________________ पञ्चदशः १५] भाषाटीकासमेतम् । (१५३) हीन अस्तंगत हो तो मनुष्यको अल्पायु (थोडे दिन जीनेवाला) करताहै परंतु यदि अपने उच्च राशि वा स्वगृहमें न हो ॥३४॥ अष्टमस्थे रवौ वर्तेश्चन्द्रे तु जलयोगतः॥ करवालात्कुजे ज्ञेयं मरणं ज्वरतो बुधे ॥ ३५॥ गुरौ त्रिदोषतः शुक्र क्षुधया तृषया शनौ ॥ चरस्थिरद्विस्वभावैः परदेशे गृहे पथि ॥ ३६॥ ४ अष्टमभावमें वा अष्टमेश सूर्य हो तो अग्निसे, चंद्रमा हो तो जलके संयोगसे, मंगल हो तो तलवार आदि शस्त्रोंसे, बुध हो तो ज्वरसे, बृहस्पति हो तो (त्रिदोष) वात, पित्त, कफ इन तीनों दोषोंसे, शुक्र हो तो क्षुधा (भूख ) अथवा अन्नादिकी अरुचिसे, शनि हो तो तृषा ( प्यास ) रोगसे मनुष्यकी मृत्यु होती है और उक्त मृत्युकारक ग्रह चर राशिमें हो तो परदेशमें, स्थिरमें हो तो घरम, द्विस्वभावमें हो तो मागेमें मृत्यु हो ॥ ३५॥३६॥ केन्द्र कोणेऽष्टमाधीशे तुङ्गादिपदग तदा ॥ दीर्घायुरुदितं पूर्वैर्व्यत्यये हीनमङ्गिनाम् ॥ ३७॥॥ * अष्टमभावका स्वामी केन्द्र अथवा कोणमें हो तथा उच्च स्वराशि आदि पदमें हो तो पूर्वाचार्योंने उस मनुष्यकी दीर्घायु कही है इनसे व्यत्यय(विपरीत)अर्थात् केंद्र कोणोंसे रहित स्थानों में तथा नीच शत्रु आदि राशियोंमें हो तो अल्पायु जानना ॥ ३७॥ नवमभावविचारः। लग्रादिन्दोनवमभवनं भाग्यमाय्यः प्रदिष्टं भाग्यं तस्मात्प्रथमममुतः संविचिन्त्यं प्रयत्नात् ॥ युक्तं दृष्टं जननसमये स्वामिना सौम्यखेटैजन्तोर्भाग्यं प्रसरति विधोरेव शौकी कलेव ॥३८॥ अथ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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