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________________ (१४६) भावकुतूहलम्- [ भावविचार: धन (२) भावेश शुक्रके साथ हो अथवा शुक्रसे ६।८।१२वें स्थानमें हो तथा लग्नेशसभी संबंध करता हो तो नेत्ररोगी होताहै५ चन्द्रादित्यौ धने स्यातां निशान्धो मनुजो भवेत् ॥ अर्कलापकोशेशाः सुखाधिपतिना युताः ॥६॥ मात्रादीनां प्रकुर्वन्ति मन्दतां नेत्रयोरपि ॥ उच्चगो निजगेहस्थो ग्रहो नैवात्र दोषकृत् ॥७॥ जिसके सूर्य चंद्रमा दूसरे भावमें हों वह मनुष्य रात्र्यंध(रतौंधी) वाला होताहै. यदि सूर्य, लग्नेश और धनेश चतुर्थेशके साथ हों तो उसके माता आदियोंको नेत्रमंदता (दृष्टि कम) करते हैं. उक्त योगमें यदि उक्तग्रह अपने उच्च वा स्वराशिका हो तो दोष नहीं करता ॥६॥७॥ । गुरुवाग्भवनाधीशौ त्रिकस्थानगतौ यदा॥ मूकतां कुरुतोऽप्येवं पितृमात्गृहेश्वरः॥८॥ ताभ्यां युतस्त्रिकस्थाने तेषां भूकत्वमादिशेत् ॥ बलाबलविवेकेन जातक विशेषतः ॥ ९ ॥ बृहस्पति और पञ्चमस्थानका स्वामी त्रिक ६३८१ १२ स्थानमें हो तो मूकता (गूंगापन ) आता है. यदि उक्त बृहस्पति और पञ्चमेशके साथ मातृपितृआदि जिस भावका स्वामी त्रिकमें हो उसको मूकता कहनी,विशेषतः जातक जाननेवालोंने उनका बल एवं निर्बलता देखके फल कहना । जैसे योगकारक ग्रह उच्च स्वराशिमें हों तथा शुभग्रहोंसे युक्त दृष्ट हों तो अनिष्ट फल पूरा नहीं देते।नीच शत्रुराशिगत, पापयुत ग्रह कष्टफल पूराही देतेहैं इत्यादि विचार करना ॥८॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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