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________________ चतुर्दशः १४] भाषाटीकासमेतम् (१४३) कुजक्षेत्रगते लग्ने सभौमे यस्य जन्मनि ॥ ज्ञशुक्रमंदसंयुक्तेस धनेशसमो नरः॥२३॥ जिस मनुष्यके जन्ममें लनका मंगल अपनी राशि १।८ का बुध,शुक्र और शनिसे युक्त हो वह कुबेरकेसमान धनवान होवै२३ स्थिरलक्ष्मीयोगः।। गुरुभे गुरुसंयुक्त जन्मलग्नगते सति ॥ चन्द्राङ्गारयुतो यस्य तस्य लक्ष्मीरचंचला ॥२४॥ बृहस्पति लग्नमें अपनी राशि ९ । १२ का तथा चंद्रमा मंगलसेभी युक्त जिस मनुष्यका हो उसके घरमें लक्ष्मी स्थिर रहे॥२४॥ कन्यामिथुनयोलग्ने सबुधे यस्य जन्मनि ॥ संयुते शुक्रमन्दाभ्यां दृष्टे वा धनिको भवेत् ॥२५॥ जिसके जन्ममें कन्या वा मिथुनका बुध लग्नका हो और शुक्र शनिसे युक्त वा दृष्ट हो तो वह धनवान् होवै ॥ २५ ॥ शुक्रराशिगते लग्ने ससिते यदि जन्मनि ॥ चन्द्रजादित्यजाभ्यां तु युते दृष्टे धनाधिपः ॥२६॥ जन्ममें जिसका शुक्र लग्नमें अपनी राशि २।७ का बुध शनिसंयुक्त हो अथवा दृष्ट हो तो धनका स्वामी होवै ॥२६॥ __ अथ दरिद्रयोगा। त्रिकोणपतिसंबंधी यो यो वित्तप्रदो ग्रहः ॥ स षडष्टव्ययाधीशैर्युतो धनविनाशकः ॥२७॥ अब दरिद्रयोग कहते हैं-जो जो धन देनेवाले ग्रह हैं वह त्रिकोण ५।९ भावेशोंसे संबंधी होकर छठे, आठवें,बारहवें भावोंके स्वामियोंसे भी युक्त हों तो धनका नाश करके दरिद्र करते हैं ॥२७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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