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________________ (१२४) भावकुतहलम्- [ग्रहावस्थाफलमतथा तीर्थयात्रा करनेवाला, नित्य उत्साही (उद्यमी) हो और हाथ पैरोंमें रोगभी रहे ॥६॥ । अनायासेनालं सपदि महसा याति सहसा प्रगल्भत्वं राज्ञः सदसि गुणविज्ञः किल कवौ ॥ सभायामायाते रिपुनिवहहन्ता धनपतेः समत्वं वा दन्तावलतुरगगन्ता नरवरः॥७॥ यदि शुक्र सभावस्थामें हो तो अकस्मात् शीघ्र विना परिश्रम स्वतेजसे राजाकी सभामें प्रगल्भत्व चतुराईको प्राप्त कर गुणोंका जाननेवाला होवे तथा शत्रुके समूहको मारनेवाला होवे, धनमें कुबेरकी तुल्यता रक्खे, अथवा हाथी घोडोंकी सवारीमें चलनेवाला मनुष्यों में श्रेष्ठ होवे ॥ ७॥ | आगमे भार्गवे नागमो जन्मिनामर्थराशेररातर तीव क्षतिः॥पुत्रपातो निपातो जनानामपि व्याधिभीतिः प्रियाभोगहानिभवत् ॥८॥ शुक्र आगमावस्थामें हो तो मनुष्योंको धनका आगम न होवे अर्थात् दरिद्री रहे, शसे बहुत हानि होवे, पुत्र तथा स्वजनोंका नाश होवे रोगका भय रहे और स्त्रीके भोगकी हानि होवे ॥८॥ क्षुधातुरो व्याधिनिपीडितः स्यादनेकधारातिभयादितश्च ॥ कवौ यदा भोजनगे युवत्या महाधनी पण्डितमाण्डितश्च ॥९॥ शुक्र भोजनावस्थामें हो तो क्षुधासे सर्वदा आतुर रहे अर्थात् भूख सहन न करसके, रोगसे पीडित रहे, अनेक प्रकार शत्रुके भयसे दुःखी रहे,स्त्रीसहित यद्वा स्त्रीके प्रतापसे बडा धनवान होवे, पंडित जनोंसे सुशोभित रहे ॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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