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________________ (१०९) दादशः १२] भाषाटीकासमेतम् । | सर्वदानन्दधर्ता जनो ज्ञानवान् यज्ञकर्ता धराधी रासद्मस्थितः॥ पद्मबंधावरातीमपंचाननः काव्यविद्याप्रलापी मुदा कौतुके ॥ ११॥ सूर्य जिसका कौतुकावस्थामें हो वह सर्वदा प्रसन्नताको धारण करताहै, ज्ञानवान, यज्ञ करनेवाला, राजद्वारमें रहनेवाला होवे, शत्रुरूपी हाथियोंके ऊपर सिंहसमान प्रतापी होवे, काव्यविद्याम अतिवाक्शक्तिवाला मनुष्य होवे ॥ ११ ॥ निद्राभरारक्तनिभे भवेतां निद्रागते लोचनपद्मयुग्मे ॥ खौ विदेशे वसतिर्जनस्य कलत्रहानिः कतिधार्थनाशः ॥ १२ ॥ जिसका सूर्य निद्रावस्थामें हो उसके नेत्र नींदसे भरेहुए रुधिरके समान लालरंगके रहें, विदेशमें निवास पावे और स्त्रीहानि एवं कितनेही वार धननाश होवे ॥ १२॥ अथ चन्द्रस्य । जनुःकाले क्षपानाथे शयनं चेदुपागते॥ मानी शीतप्रधानी च कामी वित्तविनाशकः ॥१॥ जिसके जन्मसमयमें चन्द्रमा शयनावस्थामें हो वह मानी (इजतवाला) होवै, शरीरमें शीतप्रधान रहे, अतिकामी होवे, धनका नाश अपने हाथसे किसी व्यसनमें करे॥१॥ रोगार्दितो मन्दमतिविशेषाद्वित्तेन हीनो मनुजः कठोरः ॥ अपायकारी परवित्तहारी क्षपाकरे चेदुपवेशनस्थे॥२॥ जिसका चन्द्रमा उपवेशनावस्थामें हो वह रोगसे पीडित रहे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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