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(१०६) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम्
द्वादशोऽध्यायः॥ अथ ग्रहाणां प्रत्येकावस्थाफलानि ।
तत्रादौ सूर्यस्य । मन्दाग्निरोगोबहुधानराणां स्थूलत्वमंधेरपि पित्त कोपः॥ वणं गुदे शूलमुर प्रदेशे यदोष्णभानौ शयनं प्रयाते ॥१॥
शयनादि १२ अवस्थाओंके प्रत्येकके फल कहते हैं-कि यदि सूर्य शयनावस्थामें हो तो मनुष्योंको सर्वदा मंदाग्नि (क्षुधामंद, पाचनशक्ति न्यून रहे) पैर स्थूल हों, पित्तका विशेषतः कोप रहै गुदामें व्रण होवै हृदयमें शूल रहै ॥ १॥
दारद्रताभारविहारशाली विवादविद्याभिरतो नरः स्यात् ॥ कठोरचित्तः खलु नष्टवित्तः सूर्य यदा चेदुपवेशनस्थे॥२॥
जो सूर्य उपवेशनावस्थामें हो तो दरिद्री रहे, पराया भार ढोनेवाला सर्वदा रहे, कलहही विद्या जाने और वह मनुष्य (कठोरचित्त) निर्दयी होवे और वित्त उसका नष्ट होवे ॥२॥
नरः सदानन्दधरो विवेकी परोपकारी बलवित्तयुक्तः॥ महासुखी राजकृपाभिमानी दिवाधिनाथे यदि नेत्रपाणौ ॥३॥ जिस मनुष्यका सूर्य नेत्रपाणि अवस्थामें हो वह सर्वदा आनंदमें रहे, विवेकवाला होवे, पराया उपकार करे, बलवान एवं धनवान रहे, बडा सुख भोगता रहे, राजकृपासे अभिमानयुक्त रहे॥३॥ उदारचित्तः परिपूर्णवित्तः सभासु वक्ता बहुपुण्य कां ॥ महाबली सुंदररूपशाली प्रकाशने जन्मनि पद्मिनीशे ॥४॥
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