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________________ ( १०४ ) भावकुतूहलम् - [ ग्रहावस्थाविचार: भार्या विनश्यति क्षिप्रं विधिना रक्षितापि चेत् ॥ १६ ॥ शुभयोगेक्षणादेका विनश्यति परा नहि ॥ शुभाशुभदृशा भार्या कष्टयुक्ता नृणां भवेत् ॥ १७ ॥ विशेषफल अवस्थाओं के कहते हैं कि, यदि कोई पापग्रह निद्रा अवस्था में प्राप्त सप्तमस्थानमें पापपीडित हो तो स्त्रीनाश होवे, यदि उसपर शुभग्रहकी दृष्टि हो वा शुभग्रहसे युक्त हो तो स्त्री कष्ट भोगकर बचजायगी ॥ १५ ॥ निद्राअवस्थावाला कोई भी ग्रह छठे भाव में शत्रुग्रहसहित वा उससे दृष्ट हो अथवा ऐसाही सप्तम स्थान में हो तो शीघ्र ही स्त्री नष्ट होवे यदि विधाताभी रक्षा करने आवें तौ भी नहीं रहे || १६ | यदि ऐसे ग्रह शुभयुक्त हों या उन पर शुभग्रहों की दृष्टि हो तो एक स्त्री मरे दूसरीसे गृहस्थसुख होवे यदि शुभ पाप दोनहूंसे दृष्ट वा युक्त हों तो स्त्री कष्टयुक्त रहै १५-१७॥ पुत्र सुख योगः । अपत्यभावे यदि तुङ्गगेहे निजालये पापयुतेक्षितश्चेत् ॥ निद्रागतोपत्यविनाशकारी शुभेक्षितचैकसुतस्य हन्ता ॥ ३८ ॥ यदि कोई ग्रह पंचम भाव में अपने उच्च वा अपनी शशिका होकर निद्रावस्था में हो तथा पापग्रहसे युक्त वा दृष्ट हो तो संतानका नाश करता है उस ग्रहपर शुभ ग्रह की भी दृष्टि हो तो एक पुत्रकी हानि करता है औरकी नहीं ॥ १८ ॥ अपमृत्यु योगः । राहुणा सहितौ यस्य निधनस्थ कुजार्कजौ ॥ अपमृत्युर्भवेत्तस्य, शस्त्रघातान्न संशयः ॥ १९ ॥ निधनेपि शुभो यस्य पापारिग्रहवीक्षितः तदा मृत्युर्विजानीयादाहवे शस्त्रपीडनात् ॥ २० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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