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________________ एकादशः १] -.. .". - -. SHuein.. A C भाषाटीकासमेतम् । (१०१) चन्द्रावस्था । चन्द्रस्य द्वादशावस्था फलं शुक्लदले शुभम् ॥ अशुभं कृष्णपक्षे तु विज्ञेयं गणकोत्तमैः॥३॥ चंद्रमाके बारहों अवस्थाओंका फल शुक्लपक्षमें शुभ कृष्णपक्षमें अशुभ सर्वत्र उत्तम ज्योतिषियोंने जानना ॥३॥ . कुजावस्था। मदननंदनगोऽवनिनंदनः शयनगश्च कलत्रसुतक्षयम् । प्रथूमतः कुरुते रिपुणेक्षितो रिपुगृहे करभंगमनंगतः॥४ यदि युतः शनिनापि च राहुणा शिरसि रोगकरो धरणीसुतः ॥ तनुगतः शयने नयने गदं वितनुते नितरां क्षतमंगिनाम् ॥५॥ अङ्गारकोऽङ्गे यदि नेत्रपाणौ करो त्यनंगातिशयेन भङ्गम् ॥ भुजङ्गदन्तक्षतपावकाबुभय नगे हानिमिहाङ्गनायाः॥६॥ प्रकाशने पंचमसप्तमस्थः । सुतं निहन्त्याशु निहंति वामम् ॥ पापान्वितः पापखां- तराले कुकर्मिणां केतुवरं करोति ॥७॥ मंगलके आस्थाफल ये हैं कि, भौम शयनावस्थामें सप्तम भावमें हो तो स्त्रीहानि, पंचम हो तो पुत्रहानि करता है। यदि शडभावमें शत्रुदृष्ट उक्त अवस्थामें हो तो कामदेवव्याजसे हाथ टूटजावै ॥ ४॥ यदि शनिसे वा राहुसे युक्तभी हो तो शिरमें रोग करताहै, तथा निरंतर शरीरियोंको हानिहीं देताहै ॥ ५॥ यदि मंगल लनका नेत्रपाणि अवस्थामें हो तो कामदेवके संबंधी कार्यसे शरीरके अंगभंग करताहै. सर्पभय, दंतरोग, घाव, अग्नि, जलका भय होवे, स्त्री आदि गृहस्थका सुख न होवै ॥६॥ यदि प्रकाशावस्थामें ५७ भावमें हो तो पुत्रस्त्रीकी हानि करता है, यहां पंचममें पुत्र सप्तममें स्त्रीहानि जानना। यदि पापयुक्त, पापग्रहों के बीच भी हो तो कुकर्मियों में श्रेष्ठ “पापध्वज" पापियोंमें श्रेष्ठ ध्वजा जैसा करताहै ॥७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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