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________________ (९८) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाविचार: एकादशोऽध्यायः। अथ शयनादिद्वादशावस्थाविचारः। प्रथमं शयनं ज्ञेयं द्वितीयमुपवेशनम् ॥ नेत्रपाणिः प्रकाशश्च गमनागमने ततः॥१॥ सभायां च ततो ज्ञेय आगमो भोजनं तथा ॥ नृत्यलिप्सा कौतुकं च निद्रावस्था नभःसदाम्॥२॥ अब ग्रहोंकी अवस्था कहते हैं-शयन, उपवेशन २, नेत्रपाणि३, प्रकाश४,गमन५,आगमन६, सभा७,आगम८, भोजन९, नृत्य लिप्साकौतुक, निद्रा२ये अवस्थाओं के नाम हैं ॥१॥२॥ अवस्थापरिज्ञानम् । ।। ग्रहह्मसंख्या खगमाननिघ्नी खेटांशसंख्यागुणि ता ग्रहाणाम् ॥ निजेष्टजन्मसंतनुप्रमाणैर्युतार्क वष्टा शयनाद्यवस्था ॥३॥ । जिस नक्षत्रमें ग्रह हो उसकी अश्विन्यादि गणनासे जो संख्या हो उसे ग्रहकी संख्यासे गुनके पुनः ग्रहकी अंशसंख्यासे गुनाकर अपनी इष्टघटी, जन्मनक्षत्र, लमके संख्याओंसे युक्त करके बारहसे भाग लेना शेष जो रहै वह अवस्था जाननी जैसे(१) शेषमें शयनावस्था, (२) में उपवेशन, (३) में नेत्रपाणि इत्यादि ॥ ३॥ शेषं शेषहतं स्वरांकसहितं तष्टं पुनर्भानुना, संक्षेपं गुणशेषितं खलु भवेददृष्टयाद्यवस्था विधा॥ पंचद्विद्विगुणाक्षरामगुणवेदाः क्षेपकाङ्का रखेः प्राचीनैर्यवनादिभिःसमुदितास्तेऽमी निबद्धा मया॥४॥ ___ उक्त विधिसे जो शेष रहे उसे उसीसे गुनाकर स्वरांक जोडना (यह स्वरांक आगे लिखेंगे) पुनः (१२) से शेष करके जिस ग्रहकी अवस्था अभीष्ट है उसका ( वक्ष्यमाण) क्षेपकांक जोडना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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