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________________ (९४) भावकुतूहलम्- (स्त्रीसामुद्रिकः शकटवद्यदि योनिललाटगो मृगदृशो मृदुलोमगणो भवेत् । वरदुकूलमणिव्रजमंडिता क्षितिभृतां वनिता वनितावृता॥ ११६ ॥ जिस मृगनयनीके माथेपर कोमल केशोंसे बना हुआ गाडी अथवा(योनि) भगकासा आकार हो तो वह श्रेष्ठवस्त्र, अनेक रत्नसमूहोंसे शोभित,अनेक सखी दासिकाओंसे युक्त राजरानी होवे ११६ विलसति भगभाले दक्षिणावर्तरूपः कुवलयनयनायाः कोमलो लोमसंघः॥ नरपतिकुलमर्तुः कामिनी मानिनीनामिह भवति वदान्या सैव धन्या विशेषात् ॥११७॥ पूर्वश्लोकमें जो माथेपर कोमल केशोंसे भगका चिह्न कहा है वह यदि दक्षिणावर्त (दाहिनी ओरको घुमा) हो तो वह मृगनयनी राजाधिराजकी कामिनी (प्रिया) होवै यौवनगर्विता स्त्रियोंमें वदान्या (श्रेष्ठा) होवै, विशेषतः वह स्त्री धन्या है ॥ ११७॥ कण्ठावर्ता भवति कुलटा भर्तृहन्त्री कुरूपा पृष्ठावर्ता कठिनहृदया स्वामिहन्त्री कुलनी। आवतौ वा भवत उदरे द्वाविहैकोऽपि यस्याः सापि त्याज्या कृतिभिरबला लक्षण स्तु दूरात् ११८ जिस स्त्रीके बारीक कोमल रोमोंका पुंज होकर मुडाहुआ जलका आवर्त (भौंरा) जैसा कण्ठमें हो तो बहुत पति करनेवाली, पतिको मारनेवाली,कुरूपा होवे। पीठमें हो तो कठोरहृदय(कर्कशा, निर्दया)और भर्त्ताको मारनेवाली कुलका नाश करनेवाली होतीहै। जिसके पेट में दोअथवा एक भी भौंरा हो वह भी स्त्रियोंके सामुद्रिकलक्षण जाननेवाले चतुरोंको दूरहीसे वर्जित करनी चाहिये ॥१८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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