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________________ ॥श्रीः॥ अथ भावकुतूहलम्। भाषाटीकासमेतम् । PERSOil प्रथमोऽध्यायः॥ श्रीगणेशाय नमः॥ मंगलाचरणम् । महः सेतुं हेतुं सकलजगतामङ्कुरतया सदा शंभोरम्भोभवभवभयत्राणजनकम् ॥ अहं वंदे तस्यासुरसुरमनोमोदनिकरं चिदानन्दं पादामलकमललावण्यमधिकम् ॥ १॥ प्रणम्य कान्तां परमस्य पुंसो हृदजसंस्था परदेवतां ताम् ॥ करोति भाषामथ बालतुष्टयै महीधरो भावकुतूहलीयाम् ॥ १॥ भाषाकार ग्रंथादिमें मंगलाचरणरूप प्रणाम करताहै-कि, परम पुरुष, परमात्माकी कांता (परब्रह्ममहिषी) जो हृदयकमलमें नित्य संस्थित परम देवता अर्थात् साक्षात् परब्रह्म निर्विकल्प स्वरूप आपही होरही एवं जिससे परे अन्य कोई नहीं है ऐसी उस परम इष्ट देवता साक्षात् योगमायाको प्रणाम करके महीधरनामा (ज्योतिषी टीहरीगढवालनिवासी)अथ (मंगलार्थ अब भावकुतूहलके अनभिज्ञ बालकोंके प्रसन्नतार्थ इसकी भाषाटीका सरल देशभाषामें करताहै__ ग्रंथकर्ता ग्रंथादिमें अपने इष्टदेवता शिवजीको प्रणाम करता है कि-(अई) मैं जीवनाथनामा ज्योतिषी उस सदाशिवके जलसे उत्पन्न संसार यद्वा ब्रह्माकी उत्पन्न की हुई सृष्टिमें जो जन्म मरणका एकमात्र भय है उससे रक्षा करनेवाले अर्थात् मुक्ति देनेवाले तथा दानव, एवं देवताओंके मनके आनंदकी खानि "आनंदो ब्रह्मणो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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