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________________ ( ५ ) आनंद, यही आत्मोन्नति का मार्ग है । " जैनाचार्यों ने जिसको दर्शन - ज्ञान - चारित्र कहा है, उसी को हिंदुशास्त्र - कार सत्-चित्-आनंद कहते हैं । मोक्ष के लिये यह मार्ग एक अभेद्य मार्ग हैं। साध्यसिद्धि के लिये निःशंक मार्ग है। इसी मार्ग का विवेचन स्वर्गीय गुरुदेवने इस छोटेसे पुस्तक में किया है । - स्वर्गीय गुरुदेव ने यह पुस्तिका मूल गुजराती भाषा मैं लिखी थी। आप के छोटे वडे करीब दो डझन ग्रंथ भिन्न भिन्न भाषाओं में अबतक प्रकाशित हो चुके हैं । यह छोटी पुस्तिका होते हुए भी मोक्षाभिलाषियों- आत्म कल्याणाभिलाषियों के लिये अत्यन्त उपयोगी होने से और हिन्दी में इस का अनुवाद अतक नही होनेसे, मैं मेरे हिंदी भाषाभाषी भाईयों के सम्मुख उपस्थित करता हूँ । मैं अभी विद्यार्थी अवस्था में हूं और यह मेरा प्रथम ही प्रयास है, इससे अनेक त्रुटियां दृष्टि गोचर होवेंगी । मेरी भाषा संस्कारी नहीं होने के कारण यदि इस में भाषा संबंधी कोई दोष आया होवे तो इस के लिये विद्वान् लोग क्षमा करेंगे, ऐसी आशा रखता हूं । श्रीवीरतत्व प्रकाशक मंडल - शिवपुरी भंवरमल लोढ़ा जैन भोपाल. ( ग्वालिअर ) धर्म सं. ८ ता. ९-१०-२९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034476
Book TitleAtmonnati Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1929
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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