SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३५ ) अहिंसा सत्यमस्तैन्यं ब्रह्मचर्यं तुरीयकम् । पञ्चमो व्यवहारश्चेत्येते पञ्च यमा स्मृताः ॥ ४ ॥ अक्रोधो गुरुशुश्रूषा शौचमाहारलाघत्रम् । अममादश्च पञ्चैते नियमाः परिकीर्तिताः ॥ ५ ॥ बोद्धैः कुशलधर्माच दशेष्यन्ते यदुच्यते । हिंसास्तेयान्यथाकामं पैशुन्यं परुषानृतम् || ६ || संभिन्नालापव्यापादमभिध्या दृग्विपर्ययम् । पापकर्मेति दशधा कायवाङ्मान सैस्त्यजेत् ॥ ७ ॥ ब्रह्मादिपदवाच्यानि तान्याहुर्वेदिकादयः । अतः सर्वैकवाक्यत्वाद्धर्मशास्त्रपदार्थकम् ॥ ८ ॥ 4 अर्थात् — भागवत लोग, पांच व्रत और पांच उपव्रत, दूसरे शब्दों में कहें तो पांच यम और पांच नियमइस area aafar धर्मका प्रतिपादन करते हैं। पाशुपत लोगोंने, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, दुध्यान का अनाव ब्रह्मचर्य, अक्रोध, सरलता, शौच संतोष और गुरुक्षुषा इन दश प्रकार के धर्मों का प्रतिपादन किया है । व्यास का अनुकरण करनेवाला सांख्य अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और व्यवहार, यह पांच यम तथा अक्रोध, गुरुशुश्रूषा, शौच, आहार में लाघव (अल्पाहार) और अपमाद ये पांच नियम इस तरह १० प्रकार के धर्म का प्रतिपादन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034476
Book TitleAtmonnati Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1929
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy