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________________ (१९) वंचित रहता है। जीव जानता है दान देने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। वित्त (द्र और सत्पात्र दोनों का योग भी मिलता है, तथापि दानामताराम कम के उदय से दान नहीं दे सकता है। वैसे ही द्रव्यादि उपार्जन करने के अनेक उपाय जानता है, बुद्धिमान भी है और प्रयत्न भी करता है, तथापि उसका परिश्रम निष्फल होता है और लाभान्तराय कर्म के उदय से लाभ प्राप्त नहीं कर सकता है । भोग और उपभोग की भी संपूर्ण सापग्री होते हुए भी मम्मण सेठ की तरह भोगान्तराय और उपभोगान्तराय कर्म के उदय से वह भोग नहीं सकता। इसी प्रकार इष्ट वस्तु की प्राप्ति और अनिष्ट वस्तु के परिहार करने को समर्थ है तो भी वीर्यान्तराय कर्म के उदय से साहसी नहीं होता है। ___ इस अन्तराय कर्म के पांच भेदों की पूर्णाहुति करने के साथ आठों कर्म के स्वभाव भी संक्षिप्त में बताये गये हैं। अब, किस कारण से कैसा कर्म बांधा जाता है, तत्संबंधी कुछ विचार करें। ज्ञान, ज्ञानी, ज्ञानोपकरग (पाटी-पुस्तक-कबलीआदि) की तथा गुरु आदि की आशातना अवज्ञा-द्वेषमत्सर-निंदा- उपघात-अन्तराय-प्रत्यनीकता और निहवता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034476
Book TitleAtmonnati Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1929
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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